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ध्येयगीत गाने वाले मुनिवर आंदोलन में अग्रेसर दिखाई देते हैं. कारागार में अग्रक्रम से प्रविष्ट होते हैं. खादी विद्या का अनुसंधान करते रहते हैं. ज्ञान संवर्धन का प्रदीप दीप्तिमंत करते हैं. गाँधी प्रकाश में अपने जीवनरथ को हाँकते रहे हैं.
मुनिवर का जीवन यों भव्य और बहुआयामी रहा. शांतिनिकेतन के विद्याव्यासंगी वातावरण से हट कर मुनिवर के.एम्.मुंशी जी के साथ मुंबई आए. भारतीय विद्या भवन का कलश जगमगाने लगा. यहाँ वे महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन जी के साथ रहे. चर्चा की. नई-नई अध्ययन-योजनाओं को आकार मिला. तैतिसवें भारतीय हिंदी सम्मेलन का उत्सव मेवाड उदयपुर में था. जिनविजय जी सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष के रुप में सम्मानित हुए. श्री के.एम.मुंशी जी सम्मेलनाध्यक्ष थे. इस अधिवेशन में मुनिवर की भेंट दौलतसिंह ' अरविंद ' जी से हुई. श्री अरविंद जी इतिहास पुरातत्व विभाग के पंडित थे.' प्राग्वाट इतिहास ' उनका एकमात्र ग्रंथ उनकी विद्वत्ता का परिचय करा देने के लिए काफी हैं. मुनिवर के मन में सेवाड भूमि का आकर्षण था. मेवाड राष्ट्रभक्तों की बलिदानी पीढियों का संरक्षक प्रदेश रहा है. चित्तौड किले के उत्तरी दिशा में बसे चंदेरिया नामक गाँव में इस महान प्रज्ञावंत ने आश्रय ग्रहण किया. एक प्रतिभाशाली देशभक्त के लिए इससे बढिया और कौन सी शरणस्थली हो सकती है भला ? यहाँ निवास कर उन्होंने अपने नित्य नए अध्ययन विषयों को गतिमान बनाया.
अपनी जन्मभूमि रुपहेली में अपनी माता जी का स्मारक बनाने के लिए मुनिवर प्रयत्नशील रहे. यह स्मृतिस्थल गाँधी स्मृति मंदिर के रुप में स्थापन करने की दिशा में वे प्रयत्नशील रहे. उनके जीवन का एक आर्त गहरा भावबंध माँ रहा था. इसी माता को उन्होंने आगे चलकर मातृभूमि के रुप में पूजा और विश्वमाता की सेवा की. १९६१ में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद जी ने उन्हें ' पद्मश्री ' अलंकरण से सम्मानित किया. १९७५ में आपात्कालीन परिस्थिति को विरोध करते हुए उन्होंने इस अलंकरण का त्याग किया. जून १९७७ को अपने उम्र के ८९ वें वर्ष में उन्होंने नश्वर काया का त्याग किया. उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनके पार्थिव को चंदेरिया लाया गया. उन्हींके द्वारा स्थापित सर्वोदय आश्रम के निकट चंदेरिया के सर्वदेवायतन मंदिर के परिसर में और्ध्वदेहिक संस्कारों को पूरा किया गया. उनकी स्मृति में स्थापित मूर्ति एवं आकर्षक छत्र आज भी उनकी स्मृति गाथा गाते हैं. गाँधी जी की छत्र छाया में त्यागी, देशभक्त, साधकों के साथ ज्ञान तपस्वी जिनविजय जी का स्थान विशिष्ट है.