________________ DOTamidioLibiskarinakणका टूट जाता है / परिणामतः कायोत्सर्ग अवस्था में किसी भी मनुष्य या पशु-पक्षी द्वारा यदि शारीरिक दुःख पैदा किया जाता है तो उसका आत्मा को तनिक भी अनुभव नहीं होता है / अतएव ध्यानस्थ भगवान महावीरस्वामी को गोपालक ने कान में कीलें लगाये तब उनको दुःख का कोई अनुभव नहीं हुआ था किन्तु खरक वैद्य ने जब प्रभु के कान में से कीलें बाहर निकाले उस समय उन्होंने भयंकर/तीव्र चीख निकाली थी / इस प्रकार विज्ञान में जो अनुसंधान अभी हो रहे हैं उसका ही प्रतिपादन भगवान महावीर ने 2500 साल पहले किया था जिन्हें जैन धर्मग्रंथों में पाया जाता है / P ALonrnment - .-.- .... ... ... सदर्भः 1. द्रष्टव्य : जैनदर्शननां वैज्ञानिक रहस्यो ले. मुनि श्री नंदीघोषविजयजी पृ.नं. 166 2. कल्पसूत्र टीका, व्याख्यान नं. 6 (टीकाकार : उचा. श्री विनयविजयजी) 3. स्पर्शन-रसन-घ्राण-चक्षुः-श्रोतानि / / 20 / / (तत्त्वार्थ सूत्र - अध्याय 2. सूत्र नं. 20) 4. जीवविचार प्रकरण, गाथा नं. 2, 15, 16, 17, 18, 19, 20.21 5. पंचेन्द्रियाणि / / 15 / / द्विविधानि / / 16 / / निवृत्त्युपकरणद्रव्येन्द्रियम् / / 17 / / (तत्वार्थसूत्र, अध्याय-2, सूत्र नं. 15. 16, 17) 6. लब्ध्युपयोगी भावेन्द्रियम् / / 18 / / (तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय-2, सूत्र नं. 18) 7. निवृत्तिरगोपालगनामनिर्वर्तितानीन्द्रियद्वाराणि / / निर्माणनामाङ्गोपाङ्गप्रत्यया / / (तत्त्वार्थसूत्र टीका, अध्याय-2. सूत्र नं. 17) 8. यत्र निवृत्तिद्रव्येन्द्रिय तत्रोपकरणेन्द्रियमपि न भिन्नदेशवर्ति, तस्याः स्वविषयग्रहणशक्तेर्निवृत्तिमध्यवर्तिनीत्वात् / / (तत्त्वार्थसूत्र टीका. अध्याय-2, सूत्र नं. 17) 9. लब्धिर्गतिजातिनाकर्मजनिता तदावरणीयकर्मक्षायोपशमजनिता च / / (तत्त्वार्थसूत्र टीका. अध्याय-2. सूत्र नं. 18) 10. स्पर्शादिषु मतिज्ञानोपयोगः / / (तत्त्वार्थसूत्र टीका, अध्याय-2. सूत्र नं. 18) 11. कर्मग्रंथ टीका, गाथा नं. 4-5 (आ. श्री देवेन्द्रसूरिकृत) 12. कल्पसूत्र, सस्कृत टीका, व्याख्यान नं. 6 ( टीकाकार उपा. श्री विनयविजयजी) 93 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org