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काम मन करता है । यदि मन का इन्द्रिय के साथ संबंध तोड़ दिया जाय तो इन्द्रिय द्वारा होने वाला अनुभव आत्मा तक नहीं पहुँचता है ।
"माइक मे" ने 40 वर्षों तक उसके दिमाग / मग़ज़ के दृष्टिकेन्द्र का | तनिक भी उपयोग नहीं किया था क्योंकि निवृत्ति व उपकरण स्वरूप द्रव्येन्द्रिय के द्वारा दृश्य को ग्रहण करने की शक्ति ही नहीं थी । परिणामतः तत्संबंधित मग़ज़ का दृष्टिकेन्द्र काम करता बंद हो गया था। अब जब तक वह दृष्टि केन्द्र अपना काम शुरू न करें तब तक किसी भी दृष्य की सही पहचान उनको नहीं हो सकती । इसका आधार उसके ज्ञानावरणीय व दर्शनावरणीय कर्मों के क्षयोपशम या नाश पर निर्भर करता है ।
बहुत से लोग अपनी आँखों की कैमेरा के साथ तुलना करते हैं । वैसे तो जिस प्रकार कैमेरा काम करता है ठीक उसी प्रकार अपनी आँखें काम करती हैं । किन्तु आँख की काम करने की शक्ति व गतिशीलता आधुनिक युग के सुपर कॉम्प्युटर से भी कहीं ज्यादा है । उदा. कैमेरे में किसी दृश्य को लेना हो तो उस दृश्य का पदार्थ कितनी दूरी पर है उसकी गिनती करके फोकसिंग किया जाता है । अब मान लिया जाय कि उसी दृश्य में कोई एक पदार्थ बिल्कुल नजदीक है और दूसरा पदार्थ बहुत ही दूरी पर है। यदि आप नजदीक के पदार्थ पर फोकसिंग करंगे तो दूर का पदार्थ धुंधला हो जायेगा और यदि दूर के पदार्थ पर फोकसिंग करेंगे तो नजदीक का पदार्थ धुंधला हो जायेगा । कैमेरा में दोनों पदार्थ एक साथ स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देंगे ।
जबकि अपनी आँखों के सामने एक पदार्थ बिलकुल नजदीक हो और एक पदार्थ बहुत दूर हो तथापि दोनों एक साथ स्पष्टरूप से दिखाई देंगे । यही अपनी आँखों की विशेषता है । इस प्रकार पूर्ण स्पष्ट चित्र सिर्फ अपनी आँखों से ग्रहण करके मस्तिष्क के दृष्टि केन्द्र में भेजा जाता है । वहाँ तत्संबंधित लब्धि स्वरूप सॉफ्टवेयर होता है । जब मस्तिष्क उसका उपयोग करता है तभी वह दृश्य आत्मा तक पहुँचता है और उसका स्थायी स्वरूप मग़ज़ में संग्रहीत हो जाता है । बाद में कभी पाँच सात साल के बाद उसी दृश्य संबंधित कोई भी पदार्थ सामने आ जाता है तब स्मरणशक्ति द्वारा अपना मग़ज़ उसके स्मृतिकोश में से उसी पुराने दृश्य की छबि को ढूंढ निकालकर स्मरणपट पर रख देता है । इसका मूल कारण अपने
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