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को उपकरण द्रव्येन्द्रिय कहा जाता है | उदा. त्वचा प्राप्त होने पर भी यदि चेतनातंत्र अपना कार्य न करता हो तो स्पर्श का अनुभव नहीं होता है । यहाँ निवृत्ति रूप द्रव्येन्द्रिय प्राप्त होने पर भी उपकरण रूप द्रव्येन्द्रिय का अभाव है। । ठीक उसी तरह सभी इन्द्रिय के लिये जान लेना । संक्षेप में त्वचा के स्पर्श का अनुभव करने की शक्ति, जीभ में स्वाद को पहचानने की शक्ति, नाक की सुगंध या दुर्गंध को पहचानने की शक्ति, आँख की दृश्य देखने की शक्ति और कान की श्रवण करने की क्षमता ही उपकरण रूप द्रव्येन्द्रिय है ।
निवृत्ति व उपकरण स्वरूप द्रव्येन्द्रिय द्वारा तत् तत् इन्द्रिय संबंधित विषयक संकेत मग़ज़ को पहुँचाये जाते हैं । मग़ज़ में पहुँचे हुए इन्हीं संकेतों को पहचानने का कार्य मग़ज़ में स्थित भावेन्द्रिय स्वरूप लब्धि करती है । लब्धि अर्थात् शक्ति जिसे कॉम्प्युटर की भाषा में सॉफ्टवेयर कहा जा सकता है । वह मन के द्वारा सक्रिय होती है तब उपयोग रूप भावेन्द्रिय कार्य करती है । तत् तत् इन्द्रिय संबंधित लब्धि उसको आवृत्त करने वाले कर्म के क्षयोपशम या नाश से पैदा होती है । उदा. गति नामकर्म और जाति नामकर्म से देव, मनुष्य व नारक गति में सभी पाँच इन्द्रिय संबंधित शक्ति प्राप्त होती है । जबकि तिर्यंच गति में जाति नामकर्म से एकेन्द्रियत्व, द्वीन्द्रियत्व, त्रीन्द्रियत्व, चतुरिन्द्रियत्व या पंचेन्द्रियत्व प्राप्त होता है । अतः तत् तत् जाति में तत् तत् गति संबंधित इन्द्रिय संबंधित लब्धि शक्ति प्राप्त होती है । और उपयोगस्वरूप भावेन्द्रिय का आधार मतिज्ञानावरणीय, श्रुतज्ञानावरणीय, अचक्षुदर्शनावरणीय व चक्षुदर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम या नाश पर है। अतः पंचेन्द्रियत्व प्राप्त होने पर भी क्वचित् उपर्युक्त चार कर्म में से किसी भी कर्म के उदय/अस्तित्व से तत् तत् इन्द्रिय संबंधित ज्ञान प्राप्त नहीं होता है ।
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किसी भी इन्द्रिय द्वारा गृहीत संकेतों का पृथक्करण करने की शक्ति ही लब्धि स्वरूप भावेन्द्रिय है । इस शक्ति के कार्यान्वित होने पर दृश्य की पहचान या उसी इन्द्रिय द्वारा प्राप्त अनुभव आत्मा तक पहुँचता है । जिसे उपयोगस्वरूप भावेन्द्रिय कहा जाता है ।
इस प्रकार दोनों प्रकार की द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय मन से मिलकर कार्य करती हैं तब आत्मा को उस उस इन्द्रिय संबंधित ज्ञान होता है ।
आत्मा को इन्द्रियप्रत्यक्ष पदार्थ का बोध कराने के लिये मन एक महत्त्वपूर्ण माध्यम/साधन है । आत्मा को इन्द्रिय से होने वाले अनुभव के साथ जुडने का
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