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किन्तु ' माइक मे ' को दृष्टि मिल जाने के बाद भी वह सामने स्थित पदार्थ को स्पष्ट रूप से पहचान नहीं सकता था । उसकी दृष्टि पूर्णतः स्वच्छ थी तथापि उसका मग़ज़ दृश्यों का पृथक्करण कर नहीं सकता था । ' माइक मे " को आँख द्वारा जो संकेत प्राप्त होते थे उसको पढ़ने की पद्धति उसके मग़ज़ को मालुम नहीं थी । अतः मग़ज़ में उसी प्रकार की प्रक्रिया नहीं होती थी।
डॉ. विहारी छाया ने कॉम्प्यूटर की परिभाषा में इसी प्रश्न का पृथक्करण किया है | कॉम्प्युटर में हार्डवेअर व सॉफ्टवेअर नामक दो हिस्से होते हैं । ठीक उसी प्रकार अपना शरीर कुदरत का अपूर्व कॉम्प्युटर ही है । आँख उसका ही एक भाग है । उसमें कॉर्निया, नेत्रमणि,, रेटिना आदि हार्डवेअर हैं। जब आँख द्वारा जिसका दर्शन किया जाता है तब उसको अनुभव के रूप में आत्मा के साथ जुडने का काम मन या मग़ज़ के दृष्टि केन्द्र की कार्यशीलता रूप सॉफ्ट वेअर द्वारा होता है । * माइक मे ' के लिये उसका हार्डवेअर तो अच्छी तरह काम करता था किन्तु चेतनातंत्र द्वारा प्राप्त दृश्य के संकेतों को पृथक्करण विश्लेषण करके पहचानने का सॉफ्ट वेअर काम नहीं करता था । अतः दृश्य को देखने के बावजूद भी उसका आत्मा को स्पष्ट अनुभव नहीं होता था ।
इस बात को ही 2500 वर्ष पहले हो गये श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामी ने उनके द्वारा प्ररूपित जैनदर्शन के ग्रंथों व आगमों में निम्नोक्त प्रकार से समझाया है । जिनका वास्तव में आश्चर्यजनक रूप से उपर्युक्त बात के साथ बहुत ही साम्य है।
जैन शास्त्रकारों ने पाँचों इन्द्रियों के दो प्रकार बताये हैं । 1. द्रव्येन्द्रिय और 2. भावेन्द्रिय । ' द्रव्येन्द्रिय के दो प्रकार हैं 1 1. निवृत्ति व 2. उपकरण। उसी प्रकार भावेन्द्रिय के भी दो प्रकार हैं | 1. लब्धि व 2. उपयोग । __ जैन कर्मवाद के अनुसार इन्द्रिय की प्राप्ति अंगोपांग नामकर्म व निर्माण नामकर्म से होती है और उसे निवृत्ति रूप द्रव्येन्द्रिय कहा जाता है ।' उदा. स्पर्शनेन्द्रिय रूप त्वचा, रसनेन्द्रिय रूप जिह्वा, घ्राणेन्द्रिय रूप नासिका, चक्षुरिन्द्रिय रूप आँख और श्रवणेन्द्रिय रूप कान के रूप में निवृत्ति स्वरूप द्रव्येन्द्रिय प्राप्त होने पर भी वह पूर्णतः काम दे सके ऐसा कोई नियम नहीं है। और तत्तत् इन्द्रिय मे तत् तत् इन्द्रिय संबंधित विषय को ग्रहण करने की शक्ति
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