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( उपरिसर्प) जीव, नकुल, छिपली आदि भूजःपरिसर्प, देव, मनुष्य व नारक के जीव पँचेन्द्रिय हैं ।
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हाल ही में गुजरात समाचार की दिनांक 5 मार्च, 2003 की शतदल पूर्ति में डिस्कवरी कॉलम में डॉ. विहारी छाया ने माइक में नामक का विश्लेषण करता
एक आँख से देखने पर भी अंध मनुष्य के अनुभव हुआ लेख पढा । उसका तात्पर्य इस प्रकार है ।
"माइक मे" तीन साल का था तब खदान के मजदूरों के लिये जो लैम्प इस्तेमाल किया जाता है, जिसका आविष्कार हम्फ्री डेविड ने किया था । उसमें उपयोगी तैल से भरी हुई जार अर्थात् बोटल उनके मूँह के पास ही फूट जाने पर अकस्मात् हुआ । उसमें वह पूर्णतः अंधा हो गया । बाद में अंधत्व का सामना करके उसने बहुत सी सिद्धियाँ प्राप्त की देखता हुआ मनुष्य जिस प्रकार कार्य करता है उससे भी बढिया, अच्छी तरह, सूक्ष्मता और जल्दी से काम करने लगा । अंधे मनुष्यों की पर्वत से नीचे उतरने की स्कीइंग की स्पर्धा में उनका वल्ड रेकॉर्ड था । इसी स्पर्धा में सीधे उतारवाले ब्लॅक डायमन्ड नामक पर्वत पर से वह प्रति घंटे 35 माईल के वेग से नीचे उतर जाता था । उसने ई. स. 2000 के मार्च माह में दृष्टि देनेवाला एक ओपरेशन करवाया और दाहिनी आँख में एक नेत्रमणि लगवाया । बाद में 20 मार्च को जब उसकी पट्टी खोली गई तब उसे दृष्टि मिल गई थी उसकी पत्नी व उसके बच्चों से उसकी दृष्टि मिली । वह दाहिनी आँख से सब कुछ देख सकता था तथापि उससे स्पष्टरूप से किसी को पहचान नहीं सकता था ।
हमें सामान्यतया मालुम है कि अपनी आँखों में कॉर्निया पारदर्शक पटल व लैन्स (नेत्रमणि) ऐसे दो लैन्स होते हैं । किसी वस्तु में से निकलने वाले या उससे परावर्तित होने वाले प्रकाश की किरणें इन्हीं दो लैन्सों द्वारा उसके पीछे आये हुए रेटिना पर पड़ती हैं और वहाँ उसका एक प्रतिबिंब बनाती हैं । इस प्रतिबिंब को चेतनातंत्र द्वारा मग़ज़ में चक्षुरिन्द्रिय द्वारा प्राप्त अनुभव को पहचानने वाले दृष्टिकेन्द्र को पहुँचाया जाता है । बाद में यह दृष्टिकेन्द्र उन संकेतों का पूर्ण विश्लेषण करके उस वस्तु के पूर्ण स्वरूप की आत्मा को पहचान कराता है ।
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