________________ तक काल में चार प्रहर (मणकाल (निदाघ) परंपरा के " अचित्त पानी सचित्त होता है / पूर्ण गर्म किये हुये अर्थात् तीन बार उबले हुए अचित्त पानी के समय की मर्यादा श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परंपरा के " प्रवचनसारोद्धार " नामक ग्रंथ के अनुसार उष्णकाल (निदाघ) में पाँच प्रहर (15 घंटे) तक, शीतकाल में चार प्रहर (12 घंटे) तक व वर्षा ऋतु में तीन प्रहर (9 घंटे) तक की है / बाद में वह सचित्त हो जाता है / अतएव रसोईघर में गरम बर्तन के ढक्कन पर जमी हई बाष्प से पानी में रूपांतरित जल अचित्त ही होता है क्योंकि उसमें ऊपर बताये हुए समय की मर्यादा से अधिक समय व्यतीत नहीं हुआ है / जबकि बारिश के पानी को पानी में परिवर्तन होने के बाद उपर्युक्त समय से ज्यादा समय व्यतीत हो गया होता है / अतएव शास्त्रकारों ने बारिश के पानी को सचित्त बताया है / __ संक्षेपमें, प्रत्येक साधु-साध्वी व श्रावक-श्राविका एवं आरोग्यप्रद जीवन जीने की इच्छावाले सबको तीन बार उबला हुआ अचित्त पानी ही पीना चाहिये / The Eastem spiritual traditions show their followers various ways of going beyond the ordinary experience of time and of freeing themseves from the chain of cause and effect--from the bondage of karma, as the Hindus and Buddhists say. It has therefore been said that Eastern mysticism is a liberation from time. In a way same may be said of relativistic physics. Fritjof Capra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org