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अणुओं की संख्या बढायी जाय तो वातावरण ताजगीपूर्ण व स्फूर्तिदायक वन जाता है । इन अनुसंधानों के आधार पर आयोनाईजेशन मशीन बनायी गर्व है । यह यंत्र प्रति सैकंड अरबों की संख्या में ऋणविद्युद् आवेशयुक्त अ पैदा करके बाहर फेंकता है । बारिश के दिनों में हम अनुभव करते हैं वि उस समय हमें सिर्फ खा-पीकर सो जाने की इच्छा होती है, और किस काम में मन लगता नहीं है क्योंकि उस समय वातावरण में धनविद्यु आवेशयुक्त अणुओं की संख्या बहुत ही होती है । अतः गर्म किया हुआ पान सिर्फ जीवदया व आरोग्यविज्ञान की दृष्टि से ही नहीं अपि तु मन व प्रसन्नता के लिये भी काफी जरूरी है । ऊपर जो कुछ कहा गया वह पूर्णद | वैज्ञानिक है । __कुछ लोग ऐसा तर्क करते हैं कि धरती के ऊपर प्राप्त सभी प्रकार पानी में मिट्टी, भस्म इत्यादि पदार्थ होते ही हैं अतः वही पानी अचित्त होता है । तो उसे पुनः अचित्त क्यों करना ? शुद्ध पानी तो सिक प्रयोगशाला में ही मिलता है । उनकी यह बात भी अवश्य विचारणीय किन्तु उसका भी समाधान है । इस प्रकार प्राप्त पानी अचित्त भी हो सका है और सचित्त भी । किन्तु अपने पास ऐसा कोई विशिष्ट ज्ञान नहीं है अद हमें शत प्रतिशत यकीन नहीं है कि यह पानी अचित्त ही है । इस कारण कदाचित वह पानी अचित्त होने पर भी हमें उसे पुनः अचित्त करना जरू
है।
__ कुछ लोग बारिश के पानी की रसोईघर के बर्तन की सतह पर जमे बार के पानी के साथ तुलना करके कहते हैं कि बारिश का पानी यदि सजीव तो रसोईघर में बर्तन की सतह का पानी भी सजीव मानना चाहिये । किन उनकी यह बात भ्रम पैदा करने वाली है । ऊपर ऊपर से दोनों प्रक्रिया समान मालुम पड़ती है तथापि दोनों में काफी अन्तर है ।
विक्रम की बारहवीं शताब्दि में हुए श्री शांतिसूरिजी विरचित जीवविचार " नामक प्रकरण व "जीवाभिगम " इत्यादि आगम में बारिश पानी को सचित्त अफाय बताया है । क्वचित् क्वचित् बारिश के पानी, मछलियाँ भी पायी जाती है । अतः बारिश के पानी को अचित्त नहीं मान चाहिये ।
सामान्यतः श्रावक दिन में एक बार सुबह में पानी छान लेते है
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