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चाहे वह जड़ पुद्गल हो या चेतन प्रतिक्षण परिवर्तनशील है । ऊपर दिये गए उदाहरण पर बारीकी से पुनर्विचार करें तो कोई युवा किसी दिन अचानक वृद्ध नहीं हो जाता, अपितु वह प्रतिक्षण वृद्ध हो रहा होता है । परन्तु, सूक्ष्म परिवर्तन, प्रतिसमय होने वाला बदलाव, हमारी इन्द्रियों/मन/ बुद्धि की पकड़ में नहीं आता स्थूल परिवर्तन को ही हम ग्रहण कर पाते हैं, जान पाते हैं।
इस प्रकार, सामान्यत्व की भांति ही परिणमन भी वस्तु का निज - भाव है, वस्तु का स्व-तत्त्व है । परिणमन के विषय में यह अनिवार्यता भी ध्यान देने योग्य है कि पुद्गल का पुद्गल - रूप ही परिणमन होगा और जीव का जीव रूप ही परिणमन होगा। आशय यह है कि पुद्गलद्रव्य का परिणमन कभी पुद्गलत्व का अतिक्रमण नहीं कर सकता और चेतनद्रव्य का परिणमन कभी चैतन्य का, चेतन - स्वभाव का अतिक्रमण नहीं कर सकता ।
पुद्गल-स्वभाव का
8 १.३ वस्तु का एक अंश नय का विषय, जबकि सम्पूर्ण वस्तु प्रमाण का विषय
सामान्य और विशेष एक ही वस्तु के गुणधर्म होते हुए भी भिन्न-भिन्न लक्षण वाले हैं। सामान्य अपरिवर्तनीय या अविनाशी है, जबकि विशेष परिवर्तनशील या नाशवान है उसकी उत्पत्ति भी होती है और नाश भी। सामान्य एक है, जबकि एक क्षण उत्पन्न और दूसरे क्षण व्यय होने वाले विशेष अनेकानेक हैं । सामान्य और विशेष में उक्त प्रकार से यद्यपि लक्षणभेद है, फिर भी वे सत्ता की अपेक्षा अभिन्न हैं • उनको एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता । अथवा, ऐसे कह सकते हैं कि सिर्फ सामान्य या सिर्फ विशेष का होना असंभव है वस्तु के अस्तित्व में, सामान्य-रहित विशेष नहीं हो सकता और विशेष-रहित सामान्य भी नहीं हो सकता। फिर भी, सामान्य विशेष-रूप नहीं होता, और न ही विशेष सामान्य - रूप होता है । वस्तु का सामान्य अंश जहां एक ओर, द्रव्यार्थिक नय या द्रव्यदृष्टि का विषय है, वहीं, दूसरी ओर, वस्तु की लगातार
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