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________________ 9 १.१ वस्तु - स्वरूप : सामान्य - विशेषात्मक विश्व में प्रत्येक पदार्थ, प्रत्येक वस्तु आत्म-वस्तु का द्रव्य-पर्यायात्मक श्रद्धान सम्यग्दर्शन है चाहे वह जीव हो या अजीव, चेतन हो या जड़ सामान्य-विशेषात्मक है । सामान्य और विशेष दोनों ही वस्तु के अंश हैं, उसके गुणधर्म हैं। सामान्य वस्तु की वह मौलिकता, वह स्वभाव है जो कभी नहीं बदलता, जो शाश्वत है, ध्रुव है; जबकि वस्तु की जिस समय जो अवस्था है वही उस वस्तु का उस समयवर्ती विशेष है । और जैसा कि हम सभी देखते हैं, प्रत्येक पदार्थ की अवस्थाएं, पर्यायें अथवा विशेष प्रतिक्षण बदलते रहते हैं । उदाहरण के लिये, एक बालक किशोर अवस्था को प्राप्त होता है, फिर कालक्रमानुसार किशोर से युवा, और युवा से वृद्ध होता है। यहां यद्यपि बालक, किशोर आदि अवस्थाएं बदल रही हैं, तथापि इन सभी अवस्थाओं में मनुष्य मनुष्य - रूप - से कायम है। अवस्थाओं या विशेषों के परिवर्तित होते हुए भी उन सब विशेषों में मनुष्यत्व–सामान्य ज्यों-का-त्यों मौजूद है। एक और उदाहरण पर विचार करते हैं मान लीजिये कि कभी किसी जीव के किसी परपदार्थ का अवलम्बन लेने से (जिसको कि वह अनिष्ट मानता था) द्वेषमय भाव या परिणाम हुए; फिर उस जीव ने अपने उपयोग में किसी ऐसे पदार्थ का अवलम्बन लिया जिसे वह इष्ट मानता था तो द्वेष-भाव का विलय होकर उसकी परिणति रागमय हो गई; तदनन्तर, तत्त्वज्ञान का अवलम्बन लेकर उस जीव ने पुरुषार्थपूर्वक राग-द्वेष का अभाव करते हुए वीतरागता रूप परिणमन किया। परन्तु इन सब परिवर्तनों के बावजूद आत्मा आत्मा-रूप-से कायम है; रागी -द्वेषी अथवा वीतराग परिणतियों में अपरिवर्तनशील चैतन्य - सामान्य सदा, अनवरत विद्यमान है । ६ १.२ सामान्यत्व की भांति ही, परिणमन भी वस्तु का निजभाव जिस प्रकार वस्तु में सामान्य अंश अथवा द्रव्य-स्वभाव लगातार विद्यमान है, उसी प्रकार वस्तु में परिवर्तन भी लगातार होता रहता है। प्रत्येक वस्तु
SR No.229223
Book TitleAtma Vastu ka Dravya Paryayatmaka Shraddhan Samyagdarshan Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal
PublisherBabulal
Publication Year
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationArticle & Samyag Darshan
File Size78 KB
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