________________ 156 आगम साहित्य में प्रकीर्णकों का स्थान, महत्त्व एवं रचनाकाल 7. देविंदत्थओ ( देवेन्द्रस्तव ), आगम अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर, प्रथम संस्करण 1988, भूमिका, पृ० 18-22 8. Sambodhi, Institute of Indology, Ahmedabad, Vol. xVIII, Year 1992-93, pp. 74-76. 9. आराधनापताका ( आचार्य वीरभद्र ), गाथा 987. 10. दशवैकालिक चूर्णि, पृ० 3, पं० 12 - उद्धृत पइण्णयसुत्ताई, भाग 1, प्रस्तावना, पृ० 19. 11. ( क ) देवेन्द्रस्तव प्रकीर्णक, गाथा 310. ( ख ) ज्योतिष्करण्डक प्रकीर्णक, गाथा 403-405. 12. देविंदत्थओ, भूमिका, पृ० 18-22. 13. पिंडनियुक्ति, गाथा 498. 14. ( क ) कुसलाणुबंधि अध्ययन प्रकीर्णक, गाथा 63. (ख ) भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गाथा 172. 15. गच्छायार पइण्णयं ( गच्छाचार-प्रकीर्णक), आगम अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर, संस्करण 1994, भूमिका, पृ० 20-21. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org