________________ श्वेताम्बर-दिगम्बर में मतभेद 343 लेश्या तथा श्रायु के बन्धानन्ध की अपेक्षा से कषाय के जो चौदह और बीस भेद गोम्मटसार में हैं, वे श्वेताम्बर-ग्रन्थों में नहीं देखे गए / पृष्ठ-१५, नोट / ____ अपर्याप्त अवस्था में औपशमिकसम्यक्त्व पाए जाने और न पाए जाने के संबन्ध में दो पक्ष श्वेताम्बर-ग्रन्थों में हैं, परन्तु गोम्मटसार में उक्त दो में से पहिला पक्ष ही है / पृष्ठ-७०, नोट। अज्ञान-त्रिक में गुणस्थानों की संख्या के संबन्ध में दो पक्ष कर्म-ग्रन्थ में मिलते हैं, परन्तु गोम्मटसार में एक ही पक्ष है | पृष्ठ-८२, नोट / गोम्मटसार में नारकों की संख्या कर्मग्रन्थ-वर्णित संख्या से भिन्न है। पृष्ठ-११६, नोट। द्रव्यमन का श्राकार तथा स्थान दिगम्बर संप्रदाय में श्वेताम्बर की अपेक्षा भिन्न प्रकार का माना है और तीन योगों के बाह्याभ्यन्तर कारणों का वर्णन राजवार्तिक में बहुत स्पष्ट किया है / पृष्ठ-१३४ / मनःपर्यायज्ञान के योगों की संख्या दोनों संप्रदाय में तुल्य नहीं है। श्वेताम्बर-ग्रन्थों में जिस अर्थ के लिए आयोजिकाकरण, श्रावर्जितकरण और आवश्यककरण, ऐसी तीन संज्ञाएँ मिलती हैं, दिगम्बर-ग्रन्थों में उस अर्थ के लिए सिर्फ श्रावर्जितकरण, यह एक संख्या है। पृष्ठ -155 / श्वेताम्बर-ग्रन्थों में काल को स्वतन्त्र द्रव्य भी माना है और उपचरित भी। स्वरूप दोनों संप्रदाय के ग्रन्थों में एक सा नहीं है / पृष्ठ -157 / किसी किसी गुणस्थान में योगों की संख्या गोम्मटसार में कर्म-ग्रन्थ की अपेक्षा भिन्न है / पृष्ठ-१६३, नोट / दूसरे गुणस्थान के समय ज्ञान तथा अज्ञान माननेवाले ऐसे दो पक्ष श्वेताम्बर-ग्रन्थों में हैं, परन्तु गोम्मटसार में सिर्फ दूसरा पक्ष है / पृष्ठ-१६६, नोट। गुणस्थानों में लेश्या की संख्या के संबन्ध में श्वेताम्बर ग्रन्थों में दो पक्ष हैं और दिगम्बर-ग्रन्थों में सिर्फ एक पश्च है ! पृष्ठ-१७२, नोट / जीव सम्यक्त्वसहित मरकर स्त्री रूप में पैदा नहीं होता, यह बात दिगम्बर संप्रदाय को मान्य है, परन्तु श्वेताम्बर संप्रदाय को यह मन्तव्य इष्ट नहीं हो सकता क्योंकि उसमें भगवान् मल्लिनाथ का स्त्री-वेद तथा सम्यक्त्वसहित उत्पन्न होना माना गया है। [चौथा कर्मप्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org