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____ जैन धर्म और दर्शन : गुणस्थान में उपयोग की संख्या कर्मग्रन्थ और गोम्मटसार में तुल्य है। पृष्ठ-१६७, नोट! - एकेन्द्रिय में सासादनभाव मानने और न माननेवाले, ऐसे जो दो पक्ष श्वेताम्बर-अन्थों में हैं, दिगम्बर-अन्थों में भी हैं। पृष्ठ-१७१, नोट । - श्वेताम्बर-ग्रन्थों में जो कहीं कर्मबन्ध के चार हेतु, कहीं दो हेतु और कहीं पाँच हेतु कहे हुए हैं; दिगम्बर ग्रन्थों में भी वे सब वर्णित हैं । पृष्ठ-१७४, नोट ।
बन्ध-हेतुओं के उत्तर भेद आदि दोनों संप्रदाय में समान हैं। पृष्ठ-१७५, नोट । - सामान्य तथा विशेष बन्ध-हेतुओं का विचार दोनों संप्रदाय के ग्रन्थों में है। पृष्ठ-१८१, नोट।
एक संख्या के अर्थ में रूप शब्द दोनों संप्रदाय के ग्रन्थों में मिलता है । पृष्ठ-२१८, नोट | ... कर्मग्रन्थ में वर्णित दस तथा छह क्षेप त्रिलोकसार में भी हैं। पृष्ठ-२२१, नोट ।
उत्तर प्रकृतियों के मूल बन्ध-हेतु का विचार जो सर्वार्थसिद्धि में है, वह पञ्चसंग्रह में किये हुए विचार से कुछ भिन्न-सा होने पर भी वस्तुतः उसके समान ही है । पृष्ठ-२२७ ।
कर्मग्रन्थ तथा पञ्चसंग्रह में एक जीवाश्रित भावों का जो विचार है, गोम्मटसा में बहुत अंशों में उसके समान ही वर्णन है । पृष्ठ-२२६ । असमान मन्तव्य
श्वेताम्बर-ग्रन्थों में तेजःकाय के वैक्रिय शरीर का कथन नहीं है, पर दिगम्बर-ग्रन्थों में है। पृष्ठ-१६, नोट । ... श्वेताम्बर संप्रदाय की अपेक्षा दिगम्बर संप्रदाय में संशी-असंशी का व्यवहार कुछ भिन्न है। तथा श्वेताम्बर-ग्रन्थों में हेतुवादोपदेशिकी आदि संज्ञाओं का विस्तृत वर्णन है, पर दिगम्बर-ग्रंथो में नहीं है । पृष्ठ-३६ । .
श्वेताम्बर-शास्त्र-प्रसिद्ध करण पर्याप्त शब्द के स्थान में दिगम्बर-शास्त्र में निवृत्त्यपर्यास शब्द है। व्याख्या भी दोनों शब्दों की कुछ भिन्न है। पृष्ठ-४१]
श्वेताम्बर-ग्रंथों में केवल ज्ञान तथा केवलदर्शन का क्रमभावित्व, सहभावित्व और अभेद ये तीन पक्ष हैं, परन्तु दिगम्बर ग्रंथों में सहभाविप्न का एक ही पक्ष है। पृष्ठ-४३।
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