________________ 202 जैनधर्म और दर्शन श्राचार-विचार का एक प्रामाणिक संग्रह ऐसा बना रक्खा कि जो आज भी जैनधर्म के असली रूप को विशिष्ट रूप में देखने का एक प्रबल साधन है। . - अब एक प्रश्न यह है कि दिगम्बर-संप्रदाय में जैसे नियुक्ति अंशमात्र में भी पाई जाती है, वैसे मूल 'श्रावश्यक' पाया जाता है या नहीं ? अभी तक उस संप्रदाय के 'श्रावश्यक-क्रिया' संबन्धी दो ग्रन्थ हमारे देखने में आए हैं। जिनमें एक मुद्रित और दूसरा लिखित है। दोनों में सामायिक तथा प्रतिक्रमण के पाठ हैं / इन पाठों में अधिकांश भाग संस्कृत है, जो मौलिक नहीं है। जो भाग प्राकृत है, उसमें भी नियुक्ति के आधार से मौलिक सिद्ध होनेवाले 'श्रावश्यकसूत्र' का अंश बहुत कम है। जितना मूल भाग है, वह भी श्वेताम्बर-संप्रदाय में प्रचलित मूल पाठ की अपेक्षा कुछ न्यूनाधिक या कहीं कहीं रूपान्तरित भी हो गया है। नमुक्कार, करेमि भंते, लोगस्स. तस्स उत्तरी, अन्नत्थ, जो मे देवसिनो अइयारो कत्रो, इरियावहियाए, चत्तारि मंगलं. पडिकमामि एगविहे, इणमेव निग्गन्धपावयणं तथा वंदित्तु के स्थानापन्न अर्थात् श्रावक-धर्म-सम्यक्त्व, बारह व्रत, और संलेखना के अतिचारों के प्रतिक्रमण का गद्य भाग', इतने मूल 'आवश्यक-सूत्र' उक्त दो दिगम्बर-ग्रन्थों में हैं। __इनके अतिरिक्त, जो बृहत्प्रतिक्रमण-नामक भाग लिखित प्रति में है, वह श्वेताम्बर-संप्रदाय-प्रसिद्ध पक्खिय सूत्र से मिलता जुलता है। हमने विस्तार-भय से उन सब पाठों का यहाँ उल्लेख न करके उनका सूचनमात्र किया है। मूलाचार-गतं 'श्रावश्यक-नियुक्ति' की सब गाथाओं को भी हम यहाँ उद्धत नहीं करते / सिर्फ दो-तीन गाथाओं को देकर अन्य गाथाओं के नम्बर नीचे लिख देते हैं, जिससे जिज्ञासु लोग स्वयं ही मूलाचार तथा 'आवश्यक-नियुक्ति देख कर मिलान कर लेंगे। प्रत्येक 'आवश्यक' का कथन करने की प्रतिज्ञा करते समय श्री वट्टकेर स्वामी का यह कथन कि 'मैं प्रस्तुत 'आवश्यक' पर नियुक्ति कहूँगा'-( मूलाचार, गा० 517, 537, 574, 611, 631, 647), यह अवश्य अर्थ-सूचक है; क्योंकि संपूर्ण मूलाचार में 'श्रावश्यक का भाग छोड़कर अन्य प्रकरण में 'नियुक्ति' शब्द एक-आध जगह आया है। घडावश्यक के अन्त में भी उस भाग को श्री वट्टकेर स्वामी नियुक्ति के नाम से ही निर्दिष्ट किया है (मूलाचार, गा० 686, 660) इससे यह स्पष्ट जान पड़ता है कि उस समय श्री भद्रबाहु-कृत नियुक्ति का जितना भाग दिगम्बर सम्प्रदाय में प्रचलित रहा होगा, उसको संपूर्ण किंवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org