________________ 203 आवश्यक क्रिया अंशत: उन्होंने अपने ग्रन्थ में सन्निविष्ट कर दिया। श्वेताम्बर-सम्प्रदाय में पाँचवाँ 'श्रावश्यक' कायोत्सर्ग और छठा प्रत्याख्यान है। नियुक्ति में छह 'श्रावश्यक' का नाम निर्देश करनेवाली गाथा में भी वही क्रम है; पर मूलाचार में पाँचवाँ 'आवश्यक' प्रत्याख्यान और छठा कायोत्सर्ग है। खमामि सब्वजीवाणं, सब्वे जीवा खमंतु मे। मेत्ती मे सव्वभूदेसु, वेरं मझ ण केण वि / / बृहत्प्रतिक० / खामेमि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे। मेत्ती मे सव्वभूएसु, वेरं मभं न केणई // श्राव, पृ० 765 / एसो पंचणमोयारो, सव्वपावपणासणो / मंगलेसु य सव्वेसु, पढमं वदि मंगलं // 514 / / मूला० / एसो पंचनमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो / मंगलाणं च सव्वैसिं, पढमं हवइ मंगलं // 132 / / आव०नि० / सामाइयंमि दु कदे, समणो इव सावो हवदि जम्हा / एदेन कारणेण दु, बहुसो सामाइयं कुज्जा // 531 / / मूला। सामाइयंमि उ कए, समणो इब सावो हवई जम्हा / एएण कारणेणं, बहुसो सामाइयं कुज्जा // 801 // श्राव० नि० / मूला०,गा० नं० / आव०नि०, गा० नं० [ मूला०, गा० नं / श्राव-नि०, गा० नं 504 618536 ( लोगस्स 1,7) 505 621 | 540 1058 653 541 1057 510 544 165 511 667 167 512 546 166 514 132 550 201 524 (भाष्य, 146) 551 202 767 552 1056 526 768 553 1060 53. 766 531 1051 533 1245 1063,1064 (भाष्य,१६०) | 558 1065 507 عرعر عرعر عرعر عرعر له له له سه سه لم 555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org