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________________ दीर्घ तपस्वी महावीर विपक्षी श्रमण भगवान् के शिष्यों में उनसे अलग होकर उनके खिलाफ विरोधी पन्थ प्रचलित करने वाले उनके जामाता क्षत्रिय-पुत्र जमाली थे। इस समय तो उनकी स्मृतिमात्र जैन ग्रन्थों में है। दूसरे प्रतिपक्षी उनके पूर्व सहचर गोशालक थे / उनका आजीवक पन्थ रूपान्तर पाकर आज भी हिन्दुस्तान में मौजूद है। भगवान् महावीर के जीवन का मुख्य भाग विदेह और मगध में व्यतीत हुआ है / ऐसा जान पड़ता है कि वे अधिक से अधिक यमुना के किनारे तक आए होंगे / श्रावस्ती, कोशांबी, ताम्रलिप्त, चम्पा और राजगृही इन शहरों में वह बार-बार आतेजाते और रहते थे। उपसंहार श्रमण भगवान् महावीर की तपस्या और उनके शान्तिपूर्ण दीर्घ-जीवन और उपदेश से उस समय मगध, विदेह, काशी कोशल और दूसरे कितने ही प्रदेशों के धार्मिक और सामाजिक जीवन में बड़ी क्रान्ति हो गई थी। उसका प्रमाण / केवल शास्त्र के पन्नों में ही नहीं, बल्कि हिन्दुस्तान के मानसिक जगत् में अब तक जागृत अहिंसा और तप का स्वाभाविक अनुराग है। आज से 2456 वर्ष पूर्व राजगृही के पास पावापुरी नामक पवित्र स्थान में कार्तिक कृष्णा अमावस की रात को इस तपस्वी का ऐहिक जीवन पूरा हुअा : ( निर्वाण हुअा). और उनके स्थापित संघ का भार उनके प्रधान शिष्य सुधमा स्वामी पर आ पड़ा। ई. स. 1633 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229046
Book TitleDirgh Tapasvi Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherZ_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf
Publication Year1957
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & Tirthankar
File Size309 KB
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