________________
अनुमान
अनुमान शब्द के अनुमिति और अनुमितिकरण ऐसे दो अर्थ हैं । जब अनुमान शब्द भाववाची हो तब अनुमिति और जब करणवाची हो तब अनुमितिकरण अर्थ निकलता है ।
अनुमान शब्दमैं अनु और मान ऐसे दो अंश हैं । अनुका अर्थ है पश्चात् और मानका अर्थ है ज्ञान अर्थात् जो किसी अन्य ज्ञानके बाद ही होता है वह अनुमान | परन्तु वह अन्य ज्ञान खास ज्ञान ही विवक्षित है, जो अनुमितिका कारण होता है | उस खास ज्ञान रूपसे व्याप्तिज्ञान — जिसे लिङ्गपरामर्श भी कहते हैं—इष्ट है । प्रत्यक्ष और अनुमान ज्ञानमें मुख्य एक अन्तर यह भी है कि प्रत्यक्ष ज्ञान नियमसे ज्ञानकारणक नहीं होता, जब कि अनुमान नियमसे ज्ञानकारक ही होता है। यही भाव अनुमान शब्द में मौजूद 'ऋतु' शके द्वारा सूचित किया गया है । यद्यपि प्रत्यक्ष भिन्न दूसरे भी ऐसे ज्ञान हैं जो अनुमान कोटि न गिने जाने पर भी नियमसे ज्ञानजन्य ही हैं, जैसे उपमान शाब्द, अर्थापत्ति आदि; तथापि दर असल में जैसा कि वैशेषिक दर्शन तथा बौद्ध दर्शन में माना गया है— प्रमाण के प्रत्यक्ष और अनुमान ऐसे दो ही प्रकार हैं। बाकी के सब प्रमाण किसी न किसी तरह अनुमान प्रमाण में समाए जा सकते हैं जैसा कि उक्त द्विप्रमाणवादी दर्शनोंने समाया भी है !
अनुमान किसी भी विषयका हो, वह किसी भी प्रकारके हेतु जन्य क्यों न हो पर इतना तो निश्चित है कि अनुमानके मूलमें कहीं न कहीं प्रत्यक्ष ज्ञानका अस्तित्व अवश्य होता है। मूल में कहीं भी प्रत्यक्ष न हो ऐसा अनुमान हो ही नहीं सकता । जब कि प्रत्यक्ष अपनी उत्पत्ति में अनुमानकी अपेक्षा कदापि नहीं रखता तब अनुमान अपनी उत्पत्ति में प्रत्यक्षकी अपेक्षा अवश्य रखता है । यही भाव न्यायसूत्रगत अनुमानके लक्षण में ' ' तत्पूर्वकम् ' (१.१.५)
१. जैसे 'तत्पूर्वक' शब्द प्रत्यक्ष और अनुमानका पौर्वापर्य प्रदर्शित करता है वैसे ही जैन परम्परामै मति और श्रुतसंज्ञक दो ज्ञानोंका पौर्वापर्य बतलानेवाला 'मवं जेण सुयं' ( नन्दी सू० २४ ) यह शब्द है । विशेषा० ० ८६, १०५, १०६ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org