________________ इन्द्रियों में पारस्परिक एकत्व-नानात्व उभयवादको समन्वय करके प्राचीन जैना. चार्यों का ही अनुसरण किया है और प्रत्येक एकान्तवादमें परस्पर दिये गए दूषणोंका परिहार भी किया है। इन्द्रियोंके स्वामित्वकी चिन्ता भी दर्शनोंका एक खास विषय है / पर इस संबन्धमें जितनी अधिक और विस्तृत चर्चा जैनदर्शनोंमें पाई जाती है वैसी अन्य दर्शनोंमें कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती। वह बौद्ध दर्शन में है पर जैनदर्शनके मुकाबिलेमें अल्पमात्रा है। स्वामित्वकी इस चर्चाको श्रा० हेमचन्द्रने एकादशअनावलम्बी तत्त्वार्थसूत्र और भाष्यमेंसे अक्षरशः लेकर इस संबन्धमें सारा जैनमन्तव्य प्रदर्शित किया है। ई. 1636? [प्रमाण मीमांसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org