________________ अगह प्रसङ्गवश प्रगट किए हैं। अवग्रहका स्वरूप दर्शाते हुए उन्होंने कहा कि दर्शन जो अविकल्पक है वह अवग्रह नहीं, अवग्रहका परिणामी कारण अवश्य है और वह इन्द्रियार्थ संबन्धके बाद पर अवग्रहके पूर्व उत्पन्न होता है-१.१.२६-- बौद्धसम्मत निर्विकल्पक ज्ञानको अप्रमाण बतलाते हुए उन्होंने कहा है कि वह अनध्यवसाय रूप होनेसे प्रमाण नहीं, अध्यवसाय या निर्णय ही प्रमाण गिना जाना चाहिये-१.१.६ / उन्होंने निर्णयका अर्थ बतलाते हुए कहा है कि अनध्यवसायसे भिन्न तथा अविकल्पक एवं संशयसे भिन्न ज्ञान ही निर्णय हैपृ०३.पं०१ / आचार्यके उक्त सभी कथनोंसे फलित यही होता है कि वे जैनपरम्पराप्रसिद्ध दर्शन और बौद्धपरमराप्रसिद्ध निर्विकल्पकको एक ही मानते हैं और दर्शनको अनिर्णय रूप होनेसे प्रमाण नहीं मानते तथा उनका यह अप्रमाणत्व कथन भी तार्किक दृष्टि से है, आगम दृष्टिसे नहीं, जैसा कि अभयदेवभिन्न सभी जैन तार्किक मानते आए हैं। ___ श्रा. हेमचन्द्रोक्त अवग्रहका परिणामिकारणरूप दर्शन ही उपाध्यायजीका नैश्चयिक अवग्रह समझना चाहिए / ई० 1636 1 [प्रमाणमीमांसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org