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मोटाई वाले हैं। इस सप्तम पृथ्वी के ऊपर क्रम से घटते हुए तिर्यकलोग के समीप तीनो वातवलय क्रम से 5,4,3 योजन बाहुल्य वाले तथा वहाँ से ब्रह्मलोक पर्यन्त क्रम से बढ़ते हुए सप्तम पृथ्वी के निकट-सदृश 7,5,4 योजन बाहुल्य वाले हो जाते हैं तथा ब्रह्मलोक के क्रमानुसार हीन होते हुए तीनो वातवलय उर्ध्व लोक के निकट तिर्यक्लोक सदृश 5,4,3 योजन बाहुल्य वाले हो जाते हैं। लोक के शिखर पर पवनों का परिमाण क्रमशः 2 कोश, 1 कोश और 1 से कुछ कम कोश हैं। लोक के अग्रभाग पर घनोदधिवातवलय की मोटाई 2 कोश, धनवातवलय की 1 कोश और तनुवातवलय की 1 से कुछ कम कोश है।
श्वेताम्बर परंपरा के आगम साहित्य में यद्यपि लोक आयाम, विष्कम्भ आदि के बारे में विस्तृत गणितीक विवेचन उपलब्ध नहीं है, फिर भी उतरवर्ती-ग्रंथों में जो विवेचन किया गया है उसके अनुसार लोक की ऊंचाई 14 राजू है। दूसरा परिमाण लम्बाई और तीसरा परिमाण चौड़ाई विभिन्न ऊंचाईयों पर भिन्न-भिन्न हैं और समान ऊंचाई पर समान हैं जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
लोक की चौडाई सर्वत्र सात राजू की स्थापना धवलाकार आचार्य वीरसेन की मौलिक देन है। इसी मान्यता को अधिक पुष्ट प्रमाण मिले हैं और अधिकांश विद्वानों ने इसको स्वीकार किया है। उस समय सम्भवतः श्वेताम्बर आचार्यों में मृदंगाकार लोक की कल्पना प्रचलित थी, इसका उल्लेख धवला में किया गया है। किन्तु इस मान्यता में गणितीय दृष्टि से यह त्रुटि थी कि लोक का समग्र घनफल 343 घन राजू से बहुत कम था। वीरसेनाचार्य ने दो प्राचीन गाथाओं के आधार पर यह बताया कि लोक का घनफल अधोलोक में 196 घनराजू और उर्ध्वलोक में 147 घनराजू होना चाहिए। उन्होने बताया कि यह तभी संभव है जब लोक की चौड़ाई सर्वत्र 7 राजू मान ली जाय।
Aloka
Upper Loka
Aloka
Middle Loka
Aloka
- Shape proposed by Muni Mahendra Kumar
- Region of Mobile : Beings (Trasa Nadi)
Lower Loka
Aloka
श्वेताम्बर-परम्परा में लोक के विषय में मूल मान्यताओं में उपरोक्त मान्यताओं के अतिरिक्त इन मान्यताओं का भी समावेश होता है: