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लोक के आकार और आयतन के विषय में जैन साहित्य में गणितीक विवेचन मिलता है, किन्तु दिगम्बर परंपरा और श्वेताम्बर परंपरा में यह विवेचन भिन्न-भिन्न रूप में मिलता है। दिगम्बर परंम्परा के अनुसार लोक के तीन परिमाणों (ऊंचाई, लंबाई, चौड़ाई) में से प्रथम परिमाण अर्थात् ऊचाई 14 राजू है। लोक के विभिन्न स्थानों पर लोक की लम्बाई भिन्न-भिन्न है। इसको समझने के लिए लोक के (ऊचाई के प्रमाण से) दो विभागों की कल्पना करनी चाहिए। अर्थात् लोक के दो भाग करने चाहिए, जिसमें से प्रत्येक भाग की ऊचाई 7 राजू हो । इन दो भागों में से, प्रथम अधस्तन भाग (अधोलोक) नीचे (आधार पर) 7 राजू लम्बा है और ऊपर कमशः घटता-घटता 1 राजू है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। ऊर्ध्व लोक की ऊचाई 7 राजू है और नीचे 1 राजू , बीच में 5 राजू और ऊपर 1 राजू है। लोक का तीसरा परिमाण चौडाई सर्वत्र 7 राजू है । इस परिमाण के अनुसार अधोलोक का घनफल 196 धन राजू है और ऊर्ध्वलोक का घनफल 147 घन राजू है। इस प्रकार समग्र लोक का घनफल 343 घन राजू है।
Aloka
Upper Loka
1
Region
Mobile
Beings | (Trasa Nadi)
Aloka
Alokas
Middle Loka
Vata Valayas,
Loka
Lower Loka
Aloka
सम्पूर्ण लोक को वेष्टित करने वाले तीन वातवलय हैं । लोक को वेष्टित करते हुए घनोदधि वातावलय है फिर उसके बाद घनवातवलय है और अन्त में तनुवातवलय है। घनोदधि वातवलय का वर्ण गोमूत्र के सदृश है, घनवातवलय का वर्ण मूंग के सदृश है, तनुवातवलय अनेक प्रकार के रंगों को धारण किए हुए है। (कुछ आचार्यों के अनुसार यह पंचवर्ण वाला है)। इसमें से प्रथम धनोदधि वातवलय लोक का आधार है। धनोदधि वातवलय का आधार घनवातवलय है, और घनवातवलय का आधार तनुवातवलय है। अंत मे तनुवातवलय आकाश के आधार पर है एवं आकाश निज आधार पर है।
लोकाकाश के अधोभाग में दोनो पार्श्व भागों में नीचे से लगाकर एक राजू की ऊंचाई पर्यन्त तथा आठों भूमियों के नीचे तीनों वातवलय बीस-बीस हजार योजन मोटाई वाले हैं। दोनो पार्श्व भागों में राजू से उपर सप्तम पृथ्वी के निकट धनोदधि वातवलय 7 योजन, धनवातवलय 5 योजन और तनुवातवलय 4 योजन