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चौथे आरे का काल
23 तीर्थंकर : (2) अजीतनाथ (3) संभवनाथ (4) अभिनन्दन (5) सुमतिनाथ (6) पद्मप्रभ (7) सुपार्श्वनाथ (8) चन्द्रप्रभ (9) सुविधिनाथ (10) शीतलनाथ (11) श्रेयांसनाथ (12) वासुपूज्य (13) विमलनाथ (14) अनन्तनाथ (15) धर्मनाथ (16) शांतिनाथ (17) कुंथुनाथ (18) अरनाथ (19) मल्लिनाथ (20) मुनिसुव्रत (21) नमिनाथ (22) अरिष्टनेमि (नेमिनाथ)-प्रागऐतिहासिक काल (23) पार्श्वनाथ - ऐतिहासिक पुरुष
जन्म ई.पू. 877, परिनिर्वाण ई.पू. 777, आयु-100 वर्ष 178 वर्ष पश्चात् ई.पू. 599 में महावीर का जन्म।
पार्श्वनाथ के समय चातुर्याम धर्म - अहिंसा, सत्य, अस्त्य अपरिग्रह प्रवर्तित था। इसका प्रारम्भ अजीतनाथ से हुआ। अहिंसा का सामाजिक, व्यावहारिक जीवन में समावेश। धर्म प्रचार के लिए संघ बनाये। (24) महावीर
जन्म - ई.पू. 599, चैत्र शुक्ला त्रयोदशी, दक्षिण कुण्डग्राम। चौथा आरा पूरा होने में 74 वर्ष, 11 माह, साढ़े सात दिन बाकी।
दीक्षा – तीस वर्ष की अवस्था में।
साधना काल – बारह वर्ष साढ़े छह मास। पूरे साधना काल में केवल एक मुहुर्त नींद, शेष काल में ध्यान और अन्य जागरण।
कैवल्य – वैशाख शुक्ला दशमी, जंभियग्राम के बाहर ऋजुबालिका नदी के किनारे, शालवृक्ष के नीचे, गौदोहिका आसन, ईशानकोण की ओर मुँह, दिन का अंतिम प्रहर।
निर्वाण - ई.पू. 527, कार्तिक कृष्णा अमावस्या, पावापुरी में। संघ व्यवस्था-श्रमण संघ-आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, प्रवर्तक, गणी, गणधर, गणावच्छेदक मुनि दिनचर्या - सामयिक, चतुर्विशंतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, प्रत्याख्यान।
श्रावक संघ - अणुव्रतों का पालन करने वाला, श्रद्धा संपन्न। भगवान् महावीर की उत्तरवर्ती परम्परा दिगम्बर परंपरा - 1. गणधर गौतम – महावीर के बाद 12 वर्ष (कैवल्य अवस्था)
2. गणधर, सुधर्मा – गौतम के बाद 8 वर्ष (कैवल्य अवस्था) श्वेताम्बर परंपरा 1. गणधर, सुधर्मा-महावीर के बाद 12 वर्ष (कैवल्य प्राप्ति तक)
2. आर्य जम्बूकुमार (अन्तिम केवली) - सुधर्मा के बाद 44 वर्ष आचार्य जम्बू के साथ-साथ केवलज्ञान की परंपरा विछिन्न हो गई। श्रुतकेवली (चतुर्दशपूर्वी) की परंपरा :श्वेताम्बर-छह आचार्यः प्रभव, शयंभव, यशोभद्र, संभूत विजय, भद्रबाहु और स्थूलभद्र (170 वर्ष)। दिगम्बर –पाँच आचार्यः विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु (162 वर्ष) दसपूर्वी परंपरा :श्वेताम्बर - दस आचार्यः महागिरी, सुहस्ति, गुणसुन्दर, कालकाचार्य, स्कन्दिलाचार्य, रेवतिमित्र, आर्य धर्म, भद्रगुप्त, श्रीगुप्त, आर्यवज (369 वर्ष वि.सं. 114 तक) दिगम्बर - ग्यारह आचार्यः विशाखाचार्य, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जयसेन, नागसेन, सिद्धार्थ, घृतिषेण, विजय, बुद्धिलिंग, देव, धर्मसेन (183 वर्ष वि.पू. 287 तक)