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रस, स्यात् दो रस। स्यात् दो स्पर्श, स्यात् तीन स्पर्श, स्यात् चार स्पर्शों वाला होता है। वर्ण, गंध, रस और स्पर्श की विभिन्नता के आधार पर द्विप्रदेशी स्कंधों में भी प्रचुर वैविध्य रहता है।
द्रव्य की अपेक्षा स्कंध सप्रदेशी होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा स्कंध सप्रदेशी भी होते हैं और अप्रदेशी भी। जो एक आकाश प्रदेशावगाही होता है वह अप्रदेशी और जो दो आदि आकाश प्रदेशावगाही होता है वह सप्रदेशी है। काल की अपेक्षा से जो स्कंध एक समय की स्थिति वाला होता है, वह अप्रदेशी है जो इससे अधिक स्थितिवाला होता है वह सप्रदेशी है। भाव की अपेक्षा एक गुणवाला स्कंध अप्रदेशी और अधिक गुणवाला सप्रदेशी होता है। आचार्य कुंदकुंद ने पुद्गल स्कंध के छह भेद बताये हैं। 1. अतिस्थूल (बादर-बादर)-वे पुद्गल स्कंध जो देखे भी जाते है, पकड़े भी जाते हैं। ये ठोस पदार्थ
है। जो स्कंध टूट कर पुनः जुड़ नही सके वे अतिस्थूल है जैसे पर्वत, पृथ्वी, पत्थर आदि। 2. स्थूल (बादर)-जो स्कंध पृथक-पृथक होकर पुनः मिल सके, वे स्थूल कहलाते हैं, जैसे
घी, जल, तेल, रस, वायु आदि। 3. स्थूल सूक्ष्म (बादर सूक्ष्म)-वे स्कंध जो स्थूल ज्ञात होने पर भी भेदे नहीं जा सकते या हाथ आदि
से ग्रहण नहीं किए जा सकते, स्थूल सूक्ष्म है, जैसे प्रकाश, छाया, अंधकार चांदनी आदि। 4. सूक्ष्म स्थूल (सूक्ष्म बादर)-जो चाक्षूस नहीं है, पर अन्य इंद्रियों से ग्राह्य हैं। जैसे शब्द, रस, ____ गंध, स्पर्श के पुद्गल। 5. सूक्ष्म-वे सूक्ष्म पुद्गल जो इन्द्रियग्राह्य नहीं है जैसे कर्मवर्गणा आदि।* 6. अतिसूक्ष्म (सूक्ष्म-सूक्ष्म)-कर्मवर्गणा से भी नीचे के अतिसूक्ष्म स्कंध अथवा अति सूक्ष्मातिसूक्ष्म स्कंध। जैसे-द्विप्रदेशी आदि स्कंध।
शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष ये चार स्पर्श मौलिक हैं। हल्का, भारी, मृदुता और कर्कशता आपेक्षिक हैं। हल्का, भारी आदि ये चार स्पर्श अनन्त प्रदेशी स्कंध की स्थूल परिणति के साथ उत्पन्न होते हैं। रूक्ष स्पर्श की बहुलता से हल्का स्पर्श उत्पन्न होता है। स्निग्ध स्पर्श की बहुलता से भारी स्पर्श उत्पन्न होता है। शीत और स्निग्ध स्पर्श की बहुलता से मृदु स्पर्श उत्पन्न होता है। उष्ण और रूक्ष स्पर्श की बहुलता से कर्कश स्पर्श उत्पन्न होता है।
___भार का संबंध भारी ओर हल्का स्पर्श से है जो कि पुद्गल द्रव्य का ही गुण है। शेष सब द्रव्य भारहीन होते हैं। केवल हल्का या केवल भारी कोई द्रव्य नहीं होता है। चतुःस्पर्शी पुद्गगल स्कंध तथा परमाणु अगुरूलघु है और भारहीन हैं। पुद्गल स्कंधों का जब स्थूल रूप में, परिणमन होता है तब उनमें भार नाम की अवस्था उत्पन्न होती है। अष्टस्पर्शी पुद्गल गुरूलघु होते हैं और भारयुक्त होते हैं।
पुद्गल स्कंध और परमाणु प्रवाह की अपेक्षा अनादि-अनंत हैं। किन्तु स्थिति की अपेक्षा सादि-सपर्यवसति भी हैं। परमाणु परमाणु के रूप में और स्कंध स्कंध के रूप में रहे तो कम से कम एक समय और अधिक से अधिक असंख्यात काल तक रह सकते हैं। उसके बाद तो उन्हें बदलना पड़ता है। पुद्गल की दो प्रकार की परिणतियाँ होती हैं-सूक्ष्म परिणति और स्थूल परिणति । सूक्ष्म सदा सूक्ष्म नहीं रहता, स्थूल सदा स्थूल नहीं रहता। असंख्यातकाल के पश्चात् सूक्ष्म स्थूल में और स्थूल सूक्ष्म में बदल जाता है। एक गुना (Degree)काला पुद्गल कम से कम एक समय तक और अधिक से अधिक असंख्यकाल तक रह सकता है। उसके पश्चात् उसे षट्स्थान पतित वृद्धि से अनंत गुना काला होना ही है। सभी वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के परिवर्तन का यह सार्वभौम नियम है। स्वाभाविक परिणमन प्रत्येक द्रव्य में प्रतिक्षण होता रहता है। व्यंजन पर्याय (स्थूल पर्याय) का परिवर्तन भी असंख्यकाल के पश्चात् निश्चित होता है। सोने के परमाणु असंख्यकाल के पश्चात् उस रूप में नहीं रहते वे दूसरे द्रव्य के प्रायोग्य बन जाते हैं।