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________________ की आलोचना करनी हो, प्रतिक्रमण करना हो, तो वह वर्ष की समाप्ति पर करना चाहिए, जैसा कि दिन, रात्रि एवं पक्ष आदि की समाप्ति पर तत्तत् प्रतिक्रमण किए जाते हैं। इस दृष्टि से पर्युषण पर्व का आषाढ़ पूर्णिमा को होना शास्त्रसिद्ध है। निशीथभाष्य (गाथा, 3138-39) में पर्युषण के 'परियाय-वत्थवणा, पज्जोसवणा, परिवसणा, पन्जुसणा, पढमसमोसरण' आदि आठ पर्यायवाची नाम दिए हैं, उनमें 'पढमसमोसरण' की व्याख्या करते हुए महान् श्रुतधर एवं सुप्रसिद्ध चूर्णिकार आचार्य जिनदास ने स्पष्ट लिखा है कि 'दो समोसरणं-एगं वासासु, वितियं उडुबद्धे, जतो पज्जोसवणातो वरिसं आढप्पति, अतो पढमं समोसरणं भण्णति' अर्थात् पयुर्षण से वर्ष (वर्षा) शुरू होता है, अतः उसे 'पढम समोसरण' प्रथम समवसरण कहते हैं। आगे चलकर इसी प्रसंग में फिर लिखा है-'कालेणं आसाढपुण्णिमाकालेणं ठायति।' काल की दृष्टि से आषाढ़ पूर्णिमा के काल में पर्युषण स्थापित होता है। आचार्य संघदास गणी ने बृहत्कल्प भाष्य में, आचार्य क्षेमकीर्ति ने भाष्य-टीका में भी यही लिखा है-"आसाढ़ी पुण्णिमोसरणं' भाष्य गाथा 4284 । 'आषाढ़पूर्णिमायां समवसरणं' पर्युषणं भवति एष उत्सर्गः। पर्युषण पर केशलोच की परम्परा है, जो आज भी प्रचलित पर्युषण काल में चालू है। इसका आशय यह है कि पर्युषण पर्व की क्रियाओं में केशलोच भी एक क्रिया है। अब यह देखना है कि केशलोच कब होता था? निशीथ सूत्र और उसके भाष्य में पर्युषण सम्बन्धी समग्र प्रकरण को देख जाइए, स्पष्ट हो जाएगा कि यदि कोई कारण विशेष न हो तो आषाढ़ी पूर्णिमा के पर्युषण पर लोच करना शास्त्र सम्मत है। केश लोच अप्काय आदि की विराधना से बचने के लिए है, अत: वह वर्षा प्रारम्भ होते ही करना है, और वर्षाकाल में फिर प्रतिदिन करते रहना चाहिए। अतएव उत्तरकालीन टीकाकार श्री विनयविजय जी ने, कल्पसूत्र के केशलोच सम्बन्धी समाचारी सूत्र की व्याख्या करते हुए स्पष्ट शब्दों में लिखा है-"पज्जोसवणाओ परं-पर्युषणातः परं-आषाढ़ चतुर्मासकादनन्तरं गोलोमप्रमाणा अपि केशा न स्थापनीयाः आस्तां दीर्घाः।" पर्युषण पर तप की परम्परा है। यदि पर्युषण पर उपवासादि तप न करे, तो निशीथ सूत्र मूल (10-45) और भाष्य प्रायश्चित्त का विधान करते हैं। यह पर्युषण : एक ऐतिहासिक समीक्षा 113 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212404
Book TitleParyushan Ek Aetihasik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf
Publication Year2009
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationArticle, 0_not_categorized, & Paryushan
File Size1 MB
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