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________________ रूप में उत्तरोत्तर प्रसारित एवं प्रचारित होता चला गया। समवायांग (79) और कल्पसूत्र (सामाचारी-प्रकरण) का वह पाठ ही ध्वनित करता है पर्युषण पहले से नहीं चला आ रहा था, बल्कि भगवान् महावीर ने ही चालू किया। इसीलिए वह पाठ स्पष्ट कहता है कि "समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइ राए मासे वइक्कते, सत्तरिएहिं राइदिएहिं सेसेहि वासावास पज्जोसवेइ।" विचारशील अध्येता देख सकते हैं-यह इतिहास सूत्र है, विधि (कल्प) सूत्र नहीं। श्रमण भगवान् महावीर के सीधे नाम से आगम साहित्य में साध्वाचार का कोई विधि सूत्र नहीं है। जितने भी विधिसूत्र हैं, वे सब निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी, भिक्खु-भिक्खुणी के नामोल्लेख के साथ आज्ञा के रूप में प्रारंभ होते हैं, तीर्थंकरों के नाम से नहीं। उक्त विचारणा पर से पाठक निर्णय कर सकते हैं पर्युषण परम्परा अनादि नहीं है। वर्ष-समाप्ति और संवत्सरी पर्व पर्व की दृष्टि से पर्युषण प्राचीनकाल में वर्ष के अन्त में होता था। इसीलिए उसे संवत्सरी पर्व कहते हैं, जो आज भी जन साधारण की भाषा में संवच्छरी कहा जाता है। संवत्सरी का अर्थ वार्षिक पर्व है, अतएव जहाँ प्रतिक्रमण के पाठ में दिन समाप्ति पर 'दिवसोवइकूतो', रात बीतने पर, 'राई वइक्कंता', पक्ष पूर्ण होने पर, ‘पक्खो वइंक्कतो' चार महीने समाप्त होने पर 'चउम्मासी वइक्कंता' कहा जाता है उसी प्रकार संवच्छर-संवत्सर अर्थात् वर्ष पूरा होने पर 'संवच्छरो वइक्कतो' बोला जाता है। मैं पूछता हूँ, जैन परम्परा के अनुसार वर्ष कब पूरा होता है? क्या सावन में होता है? क्या भादवा में होता है? नहीं, बिल्कुल नहीं। जैन परम्परा के अनुसार वर्ष पूरा होता आषाढ़ में, आषाढ़ पूर्णिमा के दिन। नया वर्ष सावन महीने से शुरू होता है, सावन बदी एकम से। भादवा में या भादवा बदी छठ से कोई वर्ष शुरू नहीं होता। न चन्द्र वर्ष, न सूर्य वर्ष और न कोई अन्य वर्ष ही। भगवती सूत्र (श. 16, उ. 2) में स्पष्ट पाठ है “तत्थणं जेते कालमासा तेणं सावणादीया आसाढ़पज्जवसाणा दुवालस प. त. सावणे, भद्दवए, आसोए, कत्तिए, मग्गसिरे, पोसे, माहे, फागुणे, चेत्ते, वइसाहे, जेट्ठामूले, असाढ़े।" आप देख सकते हैं, यह पाठ क्या कहता है? वर्ष भर की जीवनचर्या 12 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212404
Book TitleParyushan Ek Aetihasik Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf
Publication Year2009
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationArticle, 0_not_categorized, & Paryushan
File Size1 MB
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