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________________ २० भगवत्ता : महावीर की दृष्टि में हमारे जीवन में सत्य का बड़ा महत्त्व है। लेकिन, साधारण बोल-चाल की प्रचलित भाषा पर से यदि हम सत्य का प्रान्तरिक प्रकाश ग्रहण करना चाहें, तो सत्य का वह महान् प्रकाश हमें नहीं मिलेगा। सत्य का दिव्य प्रकाश प्राप्त करने के लिए तो हमें अपने अन्तरतम की गहराई में दूर तक झाँकना होगा। आप विचार करेंगे, तो पता चलेगा कि जैन-धर्म ने सत्य के विराट रूप को स्वीकारते हुए ईश्वर के अस्तित्व के सम्बन्ध में भी एक बहुत बड़ी क्रान्ति की है। - हमारे जो दूसरे साथी हैं, दर्शन हैं, और आसपास जो मत-मतान्तर हैं, उनमें ईश्वर को बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। वहाँ साधक की सारी साधनाएँ ईश्वर को केन्द्र बनाकर चलती है। उनके अनुसार साधना में यदि ईश्वर को स्थान नहीं रहा, तो साधना का जीवन में कोई स्थान नहीं रह जाता। किन्तु, जैन-धर्म ने इस प्रकार एक व्यक्ति रूप में सर्व-सत्ताधीश ईश्वर को साधना का केन्द्र नहीं माना। सत्य ही भगवान है : तो फिर प्रश्न यह है कि जैन-धर्म की साधना का केन्द्र क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर भगवान महावीर के शब्दों के अनुसार यह है "तं सच्चं खु भगवं । मनुष्य ईश्वर के रूप में एक अलौकिक दैवी व्यक्ति के चारों ओर घूम रहा था। उसके ध्यान में ईश्वर विश्व का कर्ता-धर्ता-संहरता एक विराट् प्रभु व्यक्ति था और उसी की पूजा एवं उपासना में ही वह अपनी सारी शक्ति और समय व्यय कर रहा था। वह उसी को प्रसन्न करने के लिए कभी गलत और कभी सही रास्ते पर भटका और अन्धे की तरह धक्के खाता फिरा! जिस किसी भी विधि से उसको प्रसन्न करना, उसके जीवन का प्रधान और एकमात्र लक्ष्य था। इस प्रकार हजारों म्रान्तियाँ साधना के नाम पर मानवसमाज में पैदा हो गई थीं। ऐसी स्थिति में भगवान् महावीर आगे आए और उन्होंने एक ही बात बहुत थोड़े-से शब्दों में कहकर समस्त भ्रान्तियाँ दूर कर दी। भगवान् कौन है ? महाश्रमण भगवान् महावीर ने बतलाया कि वह भगवान् सत्य है। सत्य ही आपका भगवान् है। अतएव जो भी साधना कर सकते हो और करना चाहते हो, सत्य को सामने रख कर ही करो। अर्थात् सत्य होगा, तो साधना होगी, अन्यथा कोई भी साधना सम्भव नहीं है। सच्ची उपासना : अस्त, हम देखते हैं कि जब-जब मनुष्य सत्य के प्राचरण में गहरा उतरा, तो उसने प्रकाश पाया और जब सत्य को छोड़कर केवल ईश्वर की पूजा में लगा और उसी को प्रसन्न करने में प्रयत्नशील हुआ, तो ठोकरें खाता फिरा, भटकता रहा। आज हजारों मन्दिर है, जहाँ ईश्वर के रूप में कल्पित व्यक्ति-विशेष की पूजा की. जा रही है, किन्तु वहाँ भगवान् सत्य की उपासना का कोई सम्बन्ध नहीं होता। चाहे १. प्रश्नव्याकरण सूत्र, २, २. भगवत्ता : महावीर को दृष्टि में २७३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212378
Book TitleBhagwatta Mahavir Ke Drushti Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf
Publication Year1987
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size896 KB
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