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________________ रहना है, और शरीर के केन्द्र पर 'भी'। व्यक्तिगत भोग व अपेक्षा की भी पूर्ति करनी है, और अनासक्त धर्म की साधना भी! 'भी' का अर्थ है सन्तुलन ! दोनों केन्द्रों का, दोनों पक्षों का संतुलन किए बिना जीवन चल नहीं सकता। दो घोड़ों को सवारी: एक युवक मेरे पास आया । वह कुछ खिन्न व चितित-सा था । बात चली, तो उसने पूछा-मैं क्या करूँ, कुछ रास्ता ही नहीं सूझ रहा है ? मैंने कहा-क्या बात है ? बोलामाँ और पत्नी में बात-बात पर तकरार होती है, लड़ाई होती है, आप बतलाइए मैं किसका पक्ष ल ? मैंने हँसकर कहा--"यह बात तुम मुझसे पूछते हो...? खैर, यदि पक्ष लेना है, तो दोनों का लो, दो पक्षों का संतुलन रख कर ही ठीक निर्णय किया जा सकता है। पक्षी भी आकाश में उड़ता है, तो दोनों पंख बराबर रखकर ही उड़ सकता है, एक पंख से गति नहीं होती। यदि तुम पत्नी का पक्ष लेते हो, तो माँ के गौरव पर चोट आती है, उसका अस्तित्व खतरे में पड़ता है, और माँ का पक्ष लेते हो, तो पत्नी पर अन्याय होता है, उसका स्वाभिमान तिलमिला उठता है। इसलिए दोनों का सन्तुलन बनाए बिना गति नहीं है। दोनों को समाधान तभी मिलेगा, जब तुम दोनों के पक्ष पर सही विचार करोगे और यथोचित सन्तुलन बनायोगे।" आप दुकान पर जाते हैं, और घर पर भी आते हैं, यदि दुकान पर ही बैठे रहे, तो घर कौन संभालेगा, और घर पर ही बैठे रहे, तो दुकान पर धन्धा कौन करेगा ? न घर पर 'ही' रहना है, न दुकान पर 'ही' । बल्कि, घर पर 'भी' रहना है और दुकान पर 'भी'। दोनों का सन्तुलन बराबर रखना है। शायद आप कहेंगे-यह तो दो घोड़ों की सवारी है, बड़ी कठिन बात है। मैं कहता हूँ--यही तो घुड़सवारी की कला है। एक घोड़े पर तो हर कोई चढ़ कर यात्रा कर सकता है। उसमें विशेषता क्या है ? दो घोड़ों पर चढ़कर जो गिरे नहीं, बराबर चलता रहे, सन्तुलन बनाए रखे, यही तो चमत्कार है। मनुष्य को जीवन में दो क्या, हजारों घोड़ों पर चढ़कर चलना होता है। घर में मातापिता होते हैं, उनका सम्मान रखना पड़ता है, पत्नी होती है, उसकी समस्या भी पूरी करनी पड़ती है, छोटे भाई, बहन और बच्चे होते हैं, तो उनको भी ठीक रखना होता है, समाज के मुखिया, नेता और धर्मगुरुओं का भी आदर करना होता है--सर्वत्र संतुलन बनाकर चलना पड़ता है। यदि कहीं थोड़े से भी घबड़ा गए, सन्तुलन बिगड़ गया, तो कितनी परेशानी होती है, मुझसे कहीं ज्यादा आप इस बात का अनुभव करते होंगे। यह संतुलन तभी रह सकता है जब आप 'ही' के स्थान पर 'भी' का प्रयोग करेंगे। जैनधर्म, जो मनष्य के उत्तरदायित्वों को स्वीकार करता है, जीवन से इन्कार नहीं, इकरार सिखाता है, वह जीवन को सुखी, कर्तव्यनिष्ठ और शांतिमय बनाने के लिए इसी 'भी' की पद्धति पर बल देता है, वह जीवन में सर्वत्र संतुलन बनाए रखने का मार्ग दिखाता है। 'स्व' का संतुलन : मैं प्रारम्भ में आपको कुछ राजाओं की बात सुना चुका हूँ, उनके जीवन में वे विकथाएँ, और दुर्घटनाएँ क्यों पैदा हुई ? आप सोचेंगे और पता लगाएँगे तो उनमें 'स्व' का असंतुलन ही मुख्य कारण मिलेगा। मैंने आप से बताया कि 'स्व' का अर्थ आत्मा भी होता है और १. (क) भोक्ता च धर्माविरुद्धान् भोगान् । एवमुभी लोकावमिजयति -आपस्तम्ब०२।८।२०१२२-२३ (ख) धर्माविरुद्धः कामोस्मि । -गीता (ग) धर्मार्थाविरोधेन काम सेवेत । -कौटिल्य अर्थ०१७ १५२ Jain Education Interational पन्ना समिक्खए धम्म www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.212365
Book TitleJivan Me Swa Ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherZ_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf
Publication Year1987
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size694 KB
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