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________________ प्राकृत तथा अन्य भारतीय भाषाएँ २८५ प्राकृत के देश भेद एवं संस्कारित होने से अवान्तर विभेद हुए हैं। अतः प्राकृत शब्द की व्युत्पति करते समय 'प्रकृत्या स्वभावेन सिद्धं प्राकृतम्' अथवा 'प्रकृतीनां साधारणजनानामिदं प्राकृतम्' अर्थ को स्वीकार करना चाहिए। जन सामान्य की स्वाभाविक भाषा प्राकृत है। विभिन्न प्राकृतें प्राकृत भाषा के प्रयोग में एकरूपता नहीं है। विभिन्न विभाषाओं के बीज क्रमशः उसमें सम्मिलित होते रहे हैं । प्राकृत भाषा के स्वरूप की दृष्टि से दो भेद किये जा सकते हैं - (१) कथ्य प्राकृत और (२) साहित्य की प्राकृत । प्राकृत जनभाषा के रूप में प्राचीन समय से बोली जाती रही है, किन्तु उसका कोई उदाहरण हमारे समक्ष नहीं है । जो कुछ भी प्राकृत का स्वरूप हमारे सामने आया है, वह साहित्य के माध्यम से। इस साहित्यिक प्राकृत के भाषा के प्रयोग एवं काल की दृष्टि से तीन भेद किये जा सकते हैं-प्रथम युग, मध्ययुग और अपभ्रंश युग । ई० पू० छठी शताब्दी से ईसा की द्वितीय शताब्दी तक के बीच प्राकृत में रचे गये साहित्य की भाषा प्रथम युगीन प्राकृत कही जा सकती है। ईसा को द्वितीय शताब्दी से छठी शताब्दी तक जिस प्राकृत भाषा में साहित्य लिखा गया है, उसे मध्ययुगीन प्राकृत कहते हैं । वास्तव में इस युग की प्राकृत साहित्यिक प्राकृत थी, किन्तु जनसामान्य की भाषा प्राकृत से भी उसका सम्बन्ध बना हुआ था। प्रयोग की भिन्नता की दृष्टि से इस समय तक प्राकृत के स्वरूप में क्रमशः परिवर्तन हो गया था । तदनुरूप प्राकृत के वैयाकरणों ने प्राकृत के ये पाँच भेद निरूपित किये हैं-अर्धमागधी, शौरसेनी, महाराष्ट्री, मागधी एवं पैशाची। प्राकृत एवं अपभ्रंश मध्ययुग में ईसा की दूसरी से छठी शताब्दी तक प्राकृत भाषा का साहित्य में कई रूपों में प्रयोग हुआ । वैयाकरणों ने प्राकृत भाषा में भी नियमों के द्वारा एकरूपता लाने का प्रयत्न किया, किन्तु प्राकृत में एकरूपता नहीं आ सकी। यद्यपि साहित्य में कृत्रिम प्राकृत का प्रयोग प्रारम्भ हो गया था। इससे वह लोक से दूर हटने लग गयी थो । लेकिन जिन लोक प्रचलित भाषाओं में साहित्यिक प्राकृतों का विकास हुआ था, वे लोक भाषाएँ अभी भी प्रवाहित हो रही थीं। उन्होंने एक नयी भाषा को जन्म दिया, जिसे अपभ्रंश कहा गया है । यह प्राकृत भाषा के विकास की तीसरी अवस्था है। प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषाओं का क्षेत्र प्रायः एक जैसा था तथा एक विशेष प्रकार का साहित्य इनमें लिखा गया है। विकास की दृष्टि से भी इनमें घनिष्ठ सम्बन्ध है । अतः कई विद्वानों ने प्राकृत-अपभ्रंश को एक मान लिया है, जबकि ये दोनों स्वतंत्र परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212342
Book TitlePrakrit Tatha Anya Bharatiya Bhashaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsuman Jain
PublisherZ_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf
Publication Year
Total Pages17
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size982 KB
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