________________ 127 अपराजितपृच्छा में चित्रित सामाजिक दशा प्रति अपनी स्वीकृति का प्रकाशन कर रहे थे ? कारण जो भी रहे हों, इस साक्ष्य का किंचित् उल्लेख असंगत न होगा। विप्रजाति अश्व उसे कहा है जो अत्यन्त द्रुतगामी, स्वामी या सवार के सवारी करने पर प्रसन्न होने वाला तथा प्रज्ञाचक्षु हो / ' क्षत्रिय संज्ञक अश्व को अत्यन्त संवेदनशील, सवार को पहचानने वाला तथा अन्य व्यक्ति को लंगी मार कर गिरा देने वाला, संग्रामदुर्भर तथा कामातुर एवं शूर कहा गया है / 12 स्थिरासन, स्थिरकाय तथा मधुर शब्द करने वाले अश्व को वैश्य संज्ञा दी गई है।१३ शूद्र संज्ञक अश्व को निकृष्ट कोटि का माना गया है / जो जलाशय में प्रवेश करने से डरता हो, कर्कश स्वर में हिनहिनताा हो, एवं क्षणातुर एवं क्षणभर में स्वस्थ होने वाला हो। इन चारों वर्गों में भिन्न गुणों अश्वों को प्रकृति जातक" कहा गया है। अपराजितपृच्छा में चित्रित सामाजिक स्थिति के विभिन्न पक्षों का अध्ययन गम्भीर अनुसन्धान की अपेक्षा रखता है। आशा करनी चाहिए कि भविष्य में विद्वान् अनुसन्धित्सुओं का ध्यान इस ओर अवश्य जायेगा। प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश 11. अपराजितपृच्छा पाश्र्वोद्धरित सूत्र 80; श्लोक संख्या 4-6 / 12. अपराजितपृच्छा, सूत्र 80; श्लोक 7-8, 13. वही, सूत्र 80; श्लोक 9-11 / 14. वही, सूत्र 80; श्लोक 11-13, 15. वही, सूत्र 80; श्लोक 13-14 / परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org