________________
जयप्रकाश आन्दोलन 31
मात्र विधान सभा भंग कर देने के बाद समाज भ्रष्टाचार से मुक्त हो जायगा यह बात हमें नहीं जचेगी। यदि अब तक का अनुभव यह बतलाता कि व्यक्ति बदलने से व्यवस्था में परि. वर्तन होता तब दलित छात्र संघ भी विधान सभा भंग करने की मांग की स्वीकृति देता किन्तु हम जानते हैं कि व्यक्ति बदलने से कुछ नहीं होगा। १६६७ में भी मौजूदा मांगों को लेकर आंदोलन किया गया था और तथाकथित भ्रष्ट कांग्रेसी सरकार का अन्त भी हो गया था। नये व्यक्तियों द्वारा नवीन सरकार का सृजन भी हुआ, किन्तु भ्रष्टाचार पर कोई बांध नहीं दिया जा सका । तब्दीली यही हुई कि नये सरकार में कमजोर वर्गों का प्रतिनिधित्व कम हो गया। शिक्षा में सुधार के नाम पर विद्यार्थियों को तीन माह की फीस माफ कर दी गयी और परीक्षाओं में अनुचित कार्यों को प्रोत्साहन दिया गया।
जयप्रकाश बाबू एक और नया नारा दे रहे हैं दल विहीन जनतन्त्र का। इससे दलित वर्ग को सचेत हो जाना है। यह जनतन्त्र पर प्रहार की भूमिका हैं । इससे हम दलितों के एकमेव अधिकार वोट के अधिकार के भी छिन जाने का खतरा है । दल विहीन जनतन्त्र शायद व्यक्ति विहीन समाज में होगा । शास्त्रों का निर्माता यह शोषक वर्ग जो पहले के धर्म प्रधान समाज में परलोक के स्वर्ग का प्रलोभन दे जनता को ठगता रहा, वर्तमान राजनीति प्रधान समाज को 'दल विहीन जनतन्त्र' का चकमा दे ठग दे तो आश्चर्य की कोई बात नहीं।
आज जहां भी जनतन्त्र है, लोकतन्त्र हैं, वहां दो तीन या अधिक दल अवश्य हैं। रूस चीन जैसे साम्यवादी देशों में एक दल तो है ही। तब फिर यह दल विहीन जनतन्त्र क्या भुलावे की बात नहीं है ? इस देश को चाहिए था दलित तानाशाही, सो इसे मिल गया लोकतन्त्र और अब उस लोकतन्त्र में भी दल विहीन लोकतंत्र क्या होगा पता नहीं चलता।
आप कहेंगे, 'जयप्रकाशजी के साथ जब पूरा समाज है तब तुम यह सब क्या कहते हो ? तुम्हारे कथन में सच्चाई तो है, किन्तु जयप्रकाश के आंदोलन को हमें तेज करना है ।' ऐसे विचारकों से मैं कहना चाहूंगा कि ठीक है आप जयप्रकाश के आंदोलन का साथ दो किन्तु आने वाली पीढ़ियां अथवा आने वाला समय यदि तेरे इस कुकृत्य के लिए गाली दे तब किसी को दोष मत देना। यह वही जयप्रकाश हैं जिसने डॉ० लोहिया को बीच मंझधार में छोड़कर राजनीति से सन्यास ले लिया था और दलित क्रांति को अवरुद्ध कर दिया था। आज भी वे यही कर रहे हैं । स्मरणीय है स्वाधीनता संघर्ष कालांतर्गत हमारे श्रद्धेय नेता डॉ० अम्बेदकर की वह भूमिका जिसमें उन्होंने गांधी के आंदोलन को निस्सार और दलित जन विरोधी माना था, उस गांधीमय समाज में हमारे दिवंगत नेता को जयप्रकाश सम लोगों ने कम गालियां नहीं दी थी। आज जब हम जयप्रकाशी माया जाल के विरुद्ध उठ खड़े होते हैं तो ठीक है हमें कुछ अपमान सहना होगा, जयप्रकाशी पोंगापथियों के साथ संघर्ष करना पड़ेगा किन्तु हम मानेंगे नहीं, संघर्षरत रहेंगे; इस विश्वास के साथ कि अन्तिम विजय हमारी होगी।
हम दलित जन इस समय भूख की ज्वाला से जल रहे हैं। हमारे तन पर कपड़े नहीं हैं, पर में जूते नहीं हैं, पढ़ने को पुस्तकें नहीं है और स्वास्थ्य संरक्षण हेतु दवाएं नहीं हैं । सामाजिक अवमानना है सो अलग। हमारी इस स्थिति में पिछले सत्ताइस वर्षों में कोई खास फर्क नही आया । इतने दिनों में कांग्रेसी व्यवस्था ने हमारे लिए कुछ नहीं किया। हमें बुद्ध रखकर उसने वोट बरकरार रखे। जिसके लिए उसने किया वे ही तगड़े हो उनके विरुद्ध आज खड़े हैं। सर्वहारा समुदाय का पक्षधर प्रसिद्ध साम्यवादी दल का नेतृत्व भी भारत में उसी वर्ग के हाथ रहा जो पांच हजार वर्षों से शोषक था। 'थीसीस ऑफ हेरीडीटी' को आज वैज्ञानिक मान्यता प्राप्त है । इसलिए यदि वे कहते हैं कि हम वही नहीं हैं जो हमारे पूर्वज थे सो हम नहीं