Book Title: Jayprakash Andolan Aur Dalit Varg Author(s): Premkumar Mani Publisher: Premkumar Mani View full book textPage 1
________________ "जयप्रकाशजी के नेतृत्व वाला यह वर्तमान आन्दोलन दलित वर्ग के लिए क्या औचित्य रखता है यह मूल प्रश्न है और हमें यह अच्छी तरह जान लेना चाहिए कि यह आन्दोलन दलित वर्ग का उद्धारक नहीं विनाशक है। वर्तमान आन्दोलन का न केवल नेतृत्व ही बड़े बाप के शोख सपूतों के हाथ है बल्कि उसका उद्देश्य भी बड़े लोगों के हित से सम्बन्धित है।" जयप्रकाश आन्दोलन और दलित वर्ग प्रेम कुमार मणि स्वतंत्र भारत में जन्मे एक वर्ग विशेष के युवकों ने गत मार्च माह में बिहार में और उससे कुछ पूर्व गुजरात में अंगड़ाई ली जिसे उन्होंने अपने शब्दों में भ्रष्टाचार और मंहगाई के विरुद्ध युवा आन्दोलन कहा । गत मार्च माह में हमने देखा कि बिहार में इस आन्दोलन का क्या प्रतिफल प्राप्त हुआ। क्रूर सेना की संगीनों से कुछ कोमल बच्चों की हत्या की सूचना के सिवा सामान्य जनता को और कुछ नहीं मिला। दुर्भाग्य से अथवा सौभाग्य से इस आन्दोलन को सर्वोदयी संत जयप्रकाश बाबू का नेतृत्व मिल गया फिर तो कितने ही पत्रकार साहित्यकार और समझदार लोगों की टोली इसमें मिल गयी । सर्वोदय के स्रोत से निःसरित स्वच्छ जल में कुछ उचक्के राजनीतिज्ञों ने भी अपना राजनीतिक कवच उतार कर स्नान कर लिया और स्वच्छ हो सुसंस्कृत आन्दोलन में आ जुटे । बिहार क्या देश भर का युवक समुदाय किंकर्तव्य विमूढ़ता की स्थिति में आ गया । दलित वर्ग का युवा समुदाय भी इसी स्थिति से गुजर रहा है। वह आन्दोलन में सक्रिय रूप से शरीक होने-न-होने की छः पांच वाली स्थिति पर डगमगा रहा है। दलित छात्र संघ की बैठकों में मित्र छात्रों ने बार-बार यह प्रश्न किया है कि हमें आंदोलन में कैसी भूमिका निभानी है। वैसे ही मित्रों को आन्दोलन का औचित्य वताने हेतु हमें यह वक्तव्य प्रस्तुत करना पड़ रहा है.। जयप्रकाशजी के नेतृत्व वाला यह वर्तमान आन्दोलन दलित वर्ग के लिए क्या औचित्य रखता है यह मूल प्रश्न है और हमें यह अच्छी तरह जान लेना चाहिए कि यह आन्दोलन दलित वर्ग का उद्धारक नहीं विनाशक है । वर्तमान आन्दोलन का न केवल नेतृत्व ही बड़े बाप के शोख सपूतों के हाथ है बल्कि उसका उद्देश्य भी बड़े लोगों के हित से सम्बन्धित है। यह आंदोलन शोषक मंच पर आसीन अगली और पिछली पंक्ति के लोगों की मिली भगत का परिणाम है। शोषक मंच के अगली पंक्ति के लोग अब तक अपने ही मंच के पिछली पंक्ति वाले लोगों का शोषण करते रहे। किन्तु गत २८ वर्षों में पिछली पंक्ति वाले लोगों में भी इतनी शक्ति आ गयी कि अपने ऊपर होने वाले-शोषण को वे कबूल नहीं कर सके । इतना ही नहीं, इस लम्बी अवधि में इन्होंने शोषण करने के तजुर्बे भी अगली पंक्तिवालों से कुछ कम नहीं हासिल कर लिया। पहले जब अगली पिछली पंक्ति वाले आपस में लड़ते थे तो एक-न-एक पक्ष अवश्य दलितों का पक्षधर होता था; किन्तु अब उनकी लड़ाई बन्द हो गई है और संयुक्त ही उन्होंने अपना कुचकPage Navigation
1 2 3 4