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30 फिलासफी एण्ड सोशल एक्शन दलितों के विरुद्ध लागू कर दिया है। इनके ऐसे ही कुचक्रों में विधानसभा भंग करो का नारा भी है । इन्हें चुवाव की वर्तमान प्रणाली जंचती नहीं क्योंकि इस प्रणाली द्वारा विधान सभा में सदस्यों का एक निश्चित प्रतिशत दलित वर्ग का चला जाता है । जब तक विधानसभा जिन्दा है तब तक जनता का अंशतः ही सही प्रतिनिधित्व हो रहा है और यह प्रतिनिधित्व उन पर अंकुश है। किन्तु वे चाहते हैं विधान सभा भंग हो जाय ताकि हम निरंकुश हो शोषण कर सकें। विधानसभा भंग होने के बाद राष्ट्रपति शासन होगा और राष्ट्रपति का शासन ऑफिसरों का शासन होता है जिनकी भ्रष्टता जग जाहिर है। ऑफिसर वे ही हैं जिनके अभिभावक भारी रिश्वत देने में समर्थ थे और जब उनका शासन होगा तो उनके शोषक अभिभावक स्वतंत्र हो जायेंगे जो जमाखोर और चोर वाजारिये के रूप में स्थित हैं। दलित वर्ग का संकट आसमान छू लेगा और सम्भव है यह संकट इन्हें अनन्त में पहुंचा भी दे। गुजरात में जो कुछ हो रहा है वह उदाहरण है।
कुछ मित्र कहते हैं कि यह आंदोलन महंगाई के विरुद्ध है और इसलिए हमें इसमें भाग लेना चाहिए, सो भी गलत । महंगाई जब दलित वर्ग के लोगों को दाह रही थी तब ये सब-के-सब आन्दोलनकारी चुप थे, किन्तु जब महंगाई की लपटें दलितों को समेट कर ऊपर की ओर उठी और उससे उच्च वर्ग भी त्रस्त होने लगा तब जयप्रकाश बाबू की नींद खुली। जयप्रकाश बाबू का चरित्र क्या है कैसा है इस पर हमें टिप्पणी नहीं करनी। किन्तु यह तो स्पष्ट ही हो गया कि उनके दिल में दलित समुदाय के लिए रंचमात्र भी स्नेह नहीं है स्नेह है तो मात्र स्वसम धनमन सम्पन्न लोगों के लिए । दलित वर्ग जब भूख की ज्वाला से जलता हुआ चौरी, मुसहरी, रूपसपुर और नेवा में प्राणों की बाजी लगाकर भ्रष्टाचार, जमाखोरी, असमानता और अन्याय के विरुद्ध लड़ रहा था तो जयप्रकाशजी कहां थे । एक नहीं दर्जनों की संख्या में वे भूज दिये गए और सैकड़ों की संख्या में अभी जेलों में सड़ रहे हैं, किन्तु जयप्रकाशजी और उनके सुसंस्कृत, सफेदपोश स्थायी वेतन भोगी शिष्यों की एक भी टिप्पणी इस पर नहीं हुई। किसी ने भी एक बूंद इसके लिए न आंसू टपकाया और न संवेदना ही प्रकट की। अपने पद से इस्तीफा देने की तो बात ही अलग थी। समाचार पत्रवाले भी उन दिनों जैसे सोये हुए थे ।
आज जब समृद्ध समाज के हित हेतु हो रहे आन्दोलन में एक व्यक्ति भी मारा जाता है या जेल जाता है तो जयप्रकाशजी और उनके सफेदपोश शिष्यों की अश्र ग्रंथि बे प्रयास ही खुल जा रही है । समाचार पत्रों में उन्हें दीर्घ और पुष्ट स्थान मिल जा रहा है । यह कैसा भौड़ापन है। क्या इस पर जयप्रकाश वादी कुछ सोचते हैं ।
___यदि यह कहा जाय कि वर्तमान आन्दोलन भ्रष्टाचार के विरुद्ध है तो यह सबसे बड़ा असत्य होगा । कर्त्तव्य से विमुख होना ही भ्रष्टाचार है और इस परिप्रेक्ष्य में देखते हैं तो मालम होता है जयप्रकाशजी कुछ नये भ्रष्टाचार ला रहे हैं। विद्याथियों को विद्याध्ययन जैसे कर्तव्य से एक वर्ष तक के लिए विलग रहने की सलाह देना क्या दूसरे शब्दों में विद्यार्थियों को एक वर्ष तक भ्रष्टाचार का प्रोत्साहन देने की सलाह देना नहीं है ? सैनिकों को शासन पर अधिकार कर लेने की सलाह देना क्या सैनिकों को, जो अब तक भ्रष्टतन्त्र से अलग रहे हैं, भ्रष्टतन्त्र में आमंत्रण देना नहीं है ? यदि हम इस नुक्ता चीनी से अलग होकर भी सोचें तो पायेंगे कि यह आन्दोलन भ्रष्टाचार के विरुद्ध कुछ नहीं कर रहा है। जो सर्वोदयीजन चौबीस वर्षों में जमीन की समस्या नहीं सुलझा सके वे चन्द दिनों में हमें भ्रष्टाचार मुक्त समाज देंगे, हम कैसे विश्वास करें।