________________ 28 फिलासफी एण्ड सोशल एक्शन सहयोग लेकर भी क्रान्तिकारी परिवर्तनों को लाने में अपनी स्थिति को सामने रखते हुए अपनी ही नीति की स्थापना करें। यह स्पष्ट हो चुका है कि आज यथास्थिति को बनाये रखने की बात करना अधार्मिक है। यथास्थिति को तो मिटाना ही होगा और यदि शान्ति पूर्ण तरीकों से वह सम्भव न हो तो फिर किन्हीं भी तरीकों से सम्भव बनाना होगा। 0 जिस आर्थिक-राजनयिक व्यवस्था में करोड़ों लोग सिसक-सिसक कर दम तोड़ देते हों; 0 जहां प्रति वर्ष लाखों बच्चों के दिमाग बचपन से ही विटामिनों की कमी के कारण विकृत हो जाते हों; 0 जहां भोजन व चिकित्सा के अभाव में प्रति वर्ष लाखों बच्चे अंधे. बहरे व अपाहिज हो जाते हों; O जहां 33 करोड़ से अधिक जनता भूखी व वेकार हो वह व्यवस्था "अव्यवस्था" है, वह कानून "गैर कानून' है ।और जो 5% लोग संगीनों के बल पर इसे बनाये रखना चाहते हैं वे रक्षक नहीं "भक्षक" हैं। इसके विपरीत क्रान्तिकारी बिना स्वार्थ के हानि, लाभ या द्वेष भावना के न्याय व सत्य की प्रतिष्ठा स्थापित करना चाहता है / उसे निजी लाभ की तृष्णा नहीं होती। तो मेरा सवाल है “गैरव्यवस्था" के ठेकेदारों से : इस हत्यारी अन्याय-मूलक व्यवस्था के नीचे दबे लाखों-करोड़ों की मुक्ति के लिए तुम्हारे पास क्या है ? इस नृशंस क्रूर और हत्यारी व्यवस्था के हिंसात्मक हथकण्डों का हमराही दार्शनिक तो नहीं हो सकता / हमें तो उनके साथ चलना होगा जो हिंसक, भ्रष्ट एवम् क्रूर व्यवस्था के खिलाफ संघर्षरत हैं। / वर्गीकृत विज्ञापन ज़रूरत है। एक ऐसी दुनिया की जिसमें इजारेदार न हों। पुलिस भी न हो एशिया, अफ्रीका में या लातीनी अमरीका में किसी से भी पूछ लो // रूपान्तर : नरेश कुमार क्यूबा के कवि : डेविड फर्नान्डेज चेरीसीयान (जन्म : 1640)