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जैन रामायण 'पउमचरिउ' और हिन्दी रामायण 'मानस'
(डॉ. श्री लक्ष्मीनारायण दुबे)
था।
प्रभाव-सूत्र:
जीवन-सूत्र: जैन रामायण 'पउमचरिउ' (पद्मचरित्र) के रचयिता महाकवि स्वयंभू के समय में ब्राह्मण, बौद्ध तथा जैन धर्म ही भारत के स्वयंभू थे और हिन्दी रामायण "रामचरितमानस' के स्रष्टा गोस्वामी प्रधान धर्म थे । तुलसी के युग में इस्लाम का राजनैतिक प्रभुत्व तुलसीदास थे । स्वयंभू अपभ्रंश के वाल्मीकि थे तो तुलसी अवघी के । स्वयंभू के मूल स्रोत वाल्मीकि थे और तुलसी के भी वे ही
स्वयंभू के जीवन-काल के विषय में पर्याप्त मतभेद है । थे । स्वयंभू ने जिन कवियों का गुणगान किया था, उनमें अपभ्रंश
राहुलजी ने उनका जीवनकाल नवम शताब्दी के पूर्वार्द्ध में माना है के कवि सिर्फ चतुर्मुख हैं जिनका कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है।
जबकि डॉ. भायाणी ने उन्हें नवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में माना है । चतुर्मुख का उल्लेख हरिषेण, पुष्पदंत और कनकामर ने भी किया
डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने उनका जन्म सन् ७७० बताया है । तुलसी था । तुलसी ने स्वयंभू की कहीं कोई चर्चा नहीं की है परन्तु
का जीवनकाल सन् १५८२-१६२८ की कालावधि को घेरता है । महामण्डित राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है : मालूम होता है, तुलसी
'पउम चरिउ' (सन् ८५०-६० के मध्य लिखा गया था जबकि बाबा ने स्वयंभू रामायण को जरूर देखा होगा, फिर आश्चर्य है कि
'रामचरित मानस' सन् १५७४-१५७७ में लिखा गया था ।) उन्होंने स्वयंभू की सीता की एकाध किरण भी अपनी सीता में क्यों नहीं डाल दी । तुलसी बाबा ने स्वयंभू-रामायण को देखा था, मेरी
तुलसी की धर्मपली रलावली के समान स्वयंभू की दो इस बात पर आपत्ति होसकती है, लेकिन मैं समझता हूं कि तुलसी
पलियां थीं जो कि सुशिक्षिता तथा काव्य-प्रेमी थीं । प्रथम पली बाबा ने 'क्वचिदन्यतोपि' से स्वयंभू रामायण की ओर ही संकेत
सामिअबूबा ने कवि को विद्याधर काण्ड लिखाने में मदद की थी। किया है | आखिर नाना पुराण, निगम, आगम और रामायण के
द्वितीय पत्नी आइच्चम्बा ने स्वयंभू को अयोध्या काण्ड लिखने में बाद ब्राह्मणों का कौनसा ग्रन्थ बाकी रह जाता है, जिसमें राम की
सहयोग दिया था । उनके एकमेव पुत्र त्रिभुवन ने उनकी तीन कथा आयी है । 'क्वचिदन्यतोपि' से तुलसी बाबा का मतलब है,
कृतियों के अंतिम अंशों को पूर्ण किया था और वह स्वयं को ब्राह्मणों के साहित्य से बाहर 'कहीं अन्यत्र से भी' और अन्यत्र इस
'महाकवि' कहता हुआ अपने पिता के सुकवित्व का उत्तराधिकारी जैन ग्रन्थ में रामकथा बड़े सुन्दर रूप में मौजूद है । जिस सौरौं या
घोषित करता था। उसने 'पंचमी चरिउ' ग्रन्थ को लिखा था । सूकर क्षेत्र में गोस्वामीजी ने राम की कथा सुनी, उसी सोरों में जैन
तुलसी उत्तर भारतवासी थे जबकि स्वयंभू दाक्षिणात्य । तुलसी घरों में स्वयंभू-रामायण पढ़ी जाती थी । रामभक्त रामानन्दी साधु
उत्तर- भारत का अधिक वर्णन करते थे जबकि स्वयंभू दक्षिण राम के पीछे जिस प्रकार पड़े थे, उससे यह बिल्कुल सम्भव है कि
भारत का । स्वयंभू अपने वर्णन में विन्ध्याचल से आगे कम ही उन्हें जैनों के यहां इस रामायण का पता लग गया हो। यह यद्यपि बढ़त थ । वस्तुतः स्वयभू विदर्भवासी थे | गोस्वामीजी से आठ सौ बरस पहले बना था किन्तु तद्भव शब्दों के दोनों महाकवियों की ख्याति अपने युग में फैल चुकी थी। प्राचुर्य तथा लेखकों-वाचकों के जब तब के शब्द - सुधार के कारण स्वयंभू के पुत्र त्रिभुवन ने अपने पिता को स्वयंभूदेव, कविराज, भी आसानी से समझ में आ सकता था (हिन्दी काव्य-धारा) । कविराज चक्रवर्तित, विद्वान्, कुन्दस चूड़ामणि आदि उपाधियों से डॉ. नेमिचन्द शास्त्री (हिन्दी-जैन-साहित्य परिशीलन, भाग १)
अलंकृत किया था जिससे स्वयंभू की अपने समय में ख्याति, यश का भी अभिमत है कि हिन्दी साहित्य के अमर कवि तुलसीदास पर
तथा सम्मान की सूचना भी हमें मिलती है - तुलसी भी अपने समय स्वयंभ की 'पउमचरिउ' और 'भविसयव कहा' का अमिट प्रभाव म वाल्माक क अवतार धाषित हा चक था। पड़ा है । इतना सुनिश्चित है कि 'रामचरित मानस' के अनेक स्थल साहित्य-सूत्र : स्वयंभू की 'पउम चरिउ' रामायण से अत्यधिक प्रभावित हैं तथा
तुलसी ने द्वादश काव्य-ग्रन्थ लिखे थे । स्वयंभू-रचित तीन स्वयंभू की शैली का तुलसीदास ने अनेक स्थलों पर अनुकरण किया
ग्रन्थ 'पउम चरिउ', 'रिट्ठणेमि चरिउ' एवं 'स्वयंभू-कुन्द' बताये
जाते हैं । इनके अतिरिक्त स्वयंभू इसके विपरीत डॉ. उदयभानु सिंह (तुलसी-काव्य-मीमांसा). को 'सिरि पंचमी' और 'सुद्धय चरिय' का अभिमत है कि ब्राह्मण-परम्परा में लिखित ग्रन्थ ही तुलसी- की रचना का भी श्रेय दिया जाता साहित्य के स्रोत हैं । कुछ स्थलों पर बौद्ध-जैन राम-कथाओं से है । स्वयंभू ने सम्भवतः किसी तुलसी-वर्णित रामचरित का सादृश्य देखकर यह अनुमान कर लेना व्याकरण-ग्रन्थ की भी सृष्टि की ठीक नहीं है कि तुलसी ने उनसे प्रभावित होकर वस्तु-ग्रहण किया थी । जैन विद्वान् स्वयंभू को अलंकार है । दोनों के दृष्टिकोण में तात्विक भेद है।
तथा कोश-ग्रन्थ के रचयिता भी मानते हैं । स्वयंभू ने शायद कुल सात
श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनन्दन ग्रंथ / विश्लेषण
(२४)
छद्मवेश, छद्मी, छली, छक्का नर भुवि जान । जयन्तसेन यह दुःखदा, छोडत पावो त्राण Lord
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