________________ हमारे ज्योतिर्धर आचार्य : आचार्यश्री जोतमलजी महाराज : व्यक्तित्व दर्शन 117 / नारायणचन्दजी महाराज के दूसरे शिष्य प्रतापमलजी महाराज थे। आपका जन्म सं० 1967 में हुआ / आप गृहस्थाश्रम में जाट परिवार के थे। आपका नाम रामलालजी था। उपाध्याय पुष्कर मुनिजी के साथ सं० 1981 ज्येष्ठ शुक्ला 10 को जालोर में दीक्षा हुई और आपका नाम मुनिश्री प्रतापमलजी महाराज रखा गया। आप बहुत ही सेवाभावी सन्तरत्न थे। आपने अपने गुरुवर्य नारायणचन्दजी महाराज की अत्यधिक सेवा की / नारायणचन्दजी महाराज का दिनांक 18-6-1654 के आसोज सुदी 5 शुक्रवार को दुन्दाडा ग्राम में संथारे से स्वर्गवास हुआ और स्वामी नारायणचन्दजी महाराज के स्वर्गवास के चार महीने के पश्चात् प्रतापमलजी महाराज का जोधपुर में स्वर्गवास हुआ। उनके कोई शिष्य नहीं थे / इस प्रकार किशनचन्दजी महाराज की पद-परम्परा रही। ज्योतिर्धर आचार्यश्री जीतमलजी महाराज का व्यक्तित्व बहुत ही तेजस्वी था और कृतित्व अनूठा था / आप में वे सभी सद्गुण थे जो एक महापुरुष में अपेक्षित होते हैं। आपकी आकृति में बिजली-सी चमक थी। आपकी आँखों से छलकता हुआ वात्सल्य रस का स्रोत दर्शक को आनन्दविभोर कर देता था। आपथी के शासन काल में सम्प्रदाय की हर दृष्टि से काफी अभिवृद्धि हुई / आपके ग्रन्थ, आपकी चित्रकला आपके ज्वलन्त कीर्तिस्तम्भ के रूप में आज भी विद्यमान हैं। सन्दर्भ एवं सन्दर्भ-स्थल 1 "जात्ववेते परहितविधौ साधवो बद्धकक्षाः" / 2 "विविह कुलुप्पण्णा साहवो कप्परुक्खा" / -नन्दी चूणि 2/16 3 "देवता बान्धवा सन्तः, सन्त आत्माऽहमेव च / –श्रीमद् भागवत 11/26/34 4 'साधु जी महिमा वेद न जाने, जेता सुने तेता बखाने / "साधु की शोभा का नहिं अन्त, साधु की शोभा सदा बे-अन्त / / " 5 'महप्पसाया इसिणो हवंती' -उत्तराध्ययन 11 'चन्दो इव सोमलेसा' 7 सागरो इव गंभीरा / –औपपातिक सूत्र-समवसरण अधिकार 8 "वासी चंदणकप्पो य असणे अणसणे तहा" -उत्तराध्ययन 16/62 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org