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________________ 116 श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन प्रन्थ : अष्टम खण्ड श्रमण भगवान महावीर स्वामी के राजगीर नगर में 14 चातुर्मास हुए तो आपश्री के जोधपुर 30 चातुर्मास हुए। उसका मुख्य कारण कुछ सन्त वृद्धावस्था के कारण वहाँ पर अवस्थित थे तो उनकी सेवा हेतु आपश्री को वहाँ पर चातुर्मास करना आवश्यक हो गये थे। आचार्यश्री जीतमलजी महाराज की शिष्य परम्परा आचार्यश्री जीतमलजी महाराज एक महान् प्रतिभा सम्पन्न आचार्य थे। उनके कुल कितने शिष्य हुए ऐतिहासिक सामग्री के अभाव में निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। पर यह सत्य है कि उनके दो मुख्य शिष्य थे—प्रथम किशनचन्द जी महाराज और द्वितीय ज्ञानमलजी महाराज / ज्ञानमलजी महाराज और उनकी परम्परा का परिचय विस्तार के साथ मैंने अगले पृष्ठों में दिया है। किशनचन्द जी महाराज एक प्रतिभासम्पन्न सन्त रत्न थे। आपका जन्म अजमेर जिले के मनोहर गांव में वि० सं० 1843 में हुआ। आपके पिता का नाम प्यारेलाल जी और माता का नाम सुशीलादेवी था। जाति से आप ओसवाल थे। आपने वि० सं० 1853 में आचार्यश्री के पास दीक्षा ग्रहण की। आपको आगम साहित्य, स्तोक साहित्य का अच्छा परिज्ञान था। आपके हाथ के लिखे हुए पन्ने जोधपुर के अमर जैन ज्ञान भण्डार में आज भी सुरक्षित हैं। उनमें मुख्य रूप से आगम, थोकड़े व रास, भजनादि साहित्य है। वि० सं० 1908 में आचार्यश्री जीतमलजी महाराज के सानिध्य में ही आपश्री का स्वर्गवास हुआ। किशनचन्दजी महाराज के शिष्य हुकमचन्दजी महाराज थे। आपकी जन्मस्थली जोधपुर थी। वि० सं०१८८२ में आपका जन्म हुआ। आपके पिता का नाम नथमलजी तथा माता का नाम राजीबाई था और वे स्वर्णकार थे। आपके गृहस्थाश्रम का नाम हीराचन्द था। आपश्री ने वि० सं० 1868 में किशनचन्द जी महाराज साहब के शिष्यत्व को ग्रहण किया। आप कवि भी थे। आपको कुछ लिखी हुई कविताएँ जोधपुर के अमर जैन ज्ञान भण्डार में प्राप्त होती हैं और बहुत-सी कविता साहित्य जो सन्तों के पास में था वह नष्ट हो गया / आपका आगम साहित्य का अध्ययन बहुत ही अच्छा था। गणित विद्या के विशेषज्ञ थे। चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति के रहस्यों के ज्ञाता थे। आपके मुख्य चातुर्मास जोधपुर, पाली, जालोर, जूठा, हरसोल, रायपुर, सालावास, बड़ और समदड़ी में हुए थे। सं० 1940 के भादवा वदी दूज को चार दिन के संथारे के पश्चात् जोधपुर में आपका स्वर्गवास हुआ। आपश्री के रामकिशनजी महाराज मुख्य शिष्य थे। आपकी जन्मस्थली जोधपुर थी / स० 1611 में भादवा कृष्ण चौदस मंगलवार को आपका जन्म हुआ। आपके पिता का नाम गंगारामजी और माता का नाम कुन्दन कुँवर था। गृहस्थाश्रम में आपका नाम मिट्ठालाल था। वि० सं० 1925 के पौष वदी 11 को गुरुवार बडु ग्राम में आपने दीक्षा ग्रहण की। आपकी लिपि बड़ी सुन्दर थी। आपने पालनपुर, सिद्धपुर, पाटन, सूरत, अहमदाबाद, खम्भात और मौर्वी आदि महागुजरात के क्षेत्रों में विचरण किया। आपके राजस्थान में जोधपुर, सोजत, पाली, समदड़ी, जालोर, सिवाना खण्डप, हरसोल, जूठा, रायपुर, बडु, बोरावल, कल्याणपुर, इंदाडा, बालोतरा, कर्मावस प्रभृति क्षेत्रों में आपका मुख्य रूप से विहार क्षेत्र और वर्षावास हुए / वि० सं० 1960 ज्येष्ठ वदी 14 को संथारा जोधपुर में आपका स्वर्गवास हुआ। श्री रामकिशनजी महाराज के शिष्य-रत्न थे, नारायणचन्दजी महाराज। आपका जन्म बाडमेर जिले के सणदरी ग्राम में हुआ। आपके पिताश्री का नाम चेलाजी और माता का नाम राजाजी था। वि० सं० 1952 पौष कृष्ण 14 के दिन आपका जन्म हुआ। जब आपकी उम्र 5 वर्ष की थी, आपके पिताश्री का देहान्त हो गया, तब आपकी मातेश्वरी अपने पितृगृह थोब ग्राम में रहने लगी, वहीं पर आचार्यश्री अमरसिंहजी महाराज की सम्प्रदाय की आनन्द कुंवरजी ठाणा 6 वहाँ पधारी। उनके उपदेश से माता और पुत्र दोनों को वैराग्य भावना उत्पन्न हुई और आत्मार्थी श्री ज्येष्ठमलजी महाराज के सन्निकट आपने मातेश्वरी के साथ सं० 1967 में माघ पूर्णिमा के दिन दीक्षा ग्रहण की। ज्येष्ठमलजी महाराज ने आपको रामकिशनजी महाराज का शिष्य घोषित किया और आपश्री ने उन्हीं के नेतृत्व में रहकर आगम साहित्य का व स्थोक साहित्य का अच्छा अभ्यास किया / आपकी लिपि बड़ी सुन्दर थी। आपकी प्रवचन-कला मधुर, सरस व चित्ताकर्षक थी। आपश्री के दो शिष्य हुए-प्रथम शिष्य का नाम मुलतानमलजी महाराज था जिनकी जन्मस्थली बाड़मेर जिले के वागावास थी। आपके पिता का नाम दानमलजी और माता का नाम नैनीबाई था। सं० 1957 में आपका जन्म हुआ। आपकी बुद्धि तीक्ष्ण थी। आपने वि० सं० 1970 में समदडी में दीक्षा ग्रहण की। वि० सं० 1975 में आपका स्वर्गवास हुआ / For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.212266
Book TitleHamare Jyotirdhar Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherZ_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf
Publication Year
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size5 MB
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