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________________ 328 : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय ---0-0-0---0-0--0-0-0 तात्पर्य यह है कि जैनदर्शन यह मानता है कि किसी भी प्राणधारी का जीवन सर्वथा अहिंसक होना असम्भव है, क्योंकि प्राणधारी द्वारा जीवित रहने के लिए वायु काय आदि के जीवों का संहार विना इच्छा ही हो जाता है. इसी कारण उपरोक्त व्याख्याकार ने यत्नपूर्वक जीवनयापन में पापकर्म के बंधन न होने का प्रतिपादन किया है. हमारे देश के जीवन में अहिंसा की जो छाप दृष्टिगोचर होती है वह जैनधर्म की देन है. सामूहिक प्रश्नों के निराकरण के लिए अहिंसा का प्रयोग हमारे देश में काफी सफल रहा. जनदर्शन में मनुष्य को केवल वैयक्तिक जीवन व्यतीत करने का ही विधान नहीं किया है अपितु सामूहिक जीवन में उसके कर्तव्य भी बतलाये हैं. जैनशास्त्र “स्थानांग सूत्र" में ग्रामधर्म नगरधर्म राष्ट्रधर्म आदि का उल्लेख करके मनुष्य को सामूहिक जीवन के कर्तव्यों का बोध कराया गया. हमारे देश में विदेशी सत्ता के विरुद्ध महात्मा गांधीजी के नेतृत्व में "अहिंसक युद्ध" ही लड़ा गया. जिसके परिणामस्वरूप देश स्वतन्त्र हुआ और आज हम स्वतन्त्रता के फल भोग रहे हैं. वास्तव में यह प्रयोग था. हमारे इतिहास में शायद ही अहिंसा के सामूहिक प्रयोग का उदाहरण उपलब्ध हो सके. प्रचीन ग्रंथों में हार तथा हाथी के लिए स्वजनों का युद्ध एक प्रसिद्ध घटना है. रामायणकाल में रावण को सत्पथ पर लाने के लिए श्रीरामचन्द्र ने युद्ध का ही पाश्रय लिया. महाभारत में भी भ्रातृजनों में व्याप्त कलह के कारण युद्ध को अनिवार्य माना गया. महाभारत युद्ध के एक पात्र के द्वारा निम्न वाक्य कहलाये जो तत्कालीन स्थिति पर प्रकाश डालते हैं और जिससे युद्ध की अनिवार्यता स्पष्ट होती है. “सूच्यग्र नैव दास्यामि बिना युद्ध न केशव" वास्तव में अहिंसा के प्रयोग में गांधी-युग ने एक नई दिशा का श्रीगणेश किया था किन्तु गांधीयुग के उक्त श्रीगणेश को आज विश्व में अधिक प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है. आज पूज्य गांधीजी के स्वर्गवास को 15 वर्ष हो गये. उनके अभूतपूर्व व्यक्तित्व के अभाव के कारण "अहिंसा" का विचार गति नहीं पा रहा है, विश्व के राजनीतिज्ञ अपने प्रश्नों के निपटाने के लिए अहिंसा का माध्यम स्वीकार नहीं करते अपितु हिंसक युद्ध को माध्यम मानते हैं. यही कारण है कि कुछ समय पूर्व चीन ने सीमा विवाद के नाम पर भारत पर हिंसक आक्रमण किया और शांतिप्रेमी भारत को अपने रक्षण के हेतु शस्त्रों का उपयोग करना पड़ा. दुर्भाग्य से हमारे बीच अहिंसा का अपूर्व हामी पूज्य गांधी जी जैसा प्रभावशाली व्यक्तित्व नहीं है. इसी कारण अहिंसा के तत्त्वदर्शन को हमारे जीवन में जो स्थान मिलना चाहिए था वह नहीं मिल पा रहा है. काश समाज कोई ऐसा नररत्न पैदा कर सके. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212234
Book TitleSyadwad aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Jain
PublisherZ_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf
Publication Year1965
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ahimsa
File Size532 KB
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