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________________ -डा. श्रीमती शारदा स्वरूप 'ब्रज आश्रम' बाँसमण्डी, मुरादाबाद-२४४००१ nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnunnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn सर्वोदयी विचारों की अवधारणा के प्रेरक जैन सिद्धान्त nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn ___'जैनधर्म ने संसार को अहिंसा का सन्देश दिया। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के हाथों में यह सद्गुण शक्तिशाली शस्त्र बन गया, जिसके द्वारा उन्होंने ऐसी आश्चर्यजनक सफलतायें प्राप्त की, जिन्हें आज तक विश्व ने देखा ही न था। क्या यह कहना उचित न होगा कि गाँधीवाद जैनधर्म का ही दूसरा रूप है ? जिस हद तक जैनधर्म में अहिंसा और संन्यास का पालन किया गया है वह त्याग की एक महान् । शिक्षा है।। _ 'महात्मा' बनने से पूर्व, जब गाँधी में 'महान् आत्मा' के गुणों का क्रमिक विकास हो रहा था, श्री रायचन्द जी से जैनागम की शिक्षा ग्रहण करने का उल्लेख उन्होंने स्वयं 'हरिजन' में किया है। 'अहिंसा' महात्मा गाँधी का स्पर्श पाकर विश्व में अमर हो गई। _ 'सर्वोदय' की व्यापक, महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावशाली भावना, सिद्धांतरूप से, जैनदर्शन की जड़ों में रची-बसी है। वहाँ से ग्रहण कर, स्वतन्त्र भारत के विस्तृत परिप्रेक्ष्य में, व्यावहारिक रूप में उसे प्रस्तुत करने का श्रेय महान सन्त विनोबा भावे को है। 'युक्त्यनुशासन' के रचयिता, आचार्य श्री समन्तभद्र का स्थितिकाल आज से १७०० वर्ष से भी अधिक पूर्व माना जाता है। उन्होंने महावीर के उपदेश को 'सर्वोदय-तोर्थ' की संज्ञा दी है सर्वान्तवत्तद्गुण मुख्यकल्पं, सर्वान्तशून्यं च मिथोऽनपेक्षम् । सर्वापदामन्तकरं निरन्तं, सर्वोदयं तीर्थमिदं तवैव ॥ यहाँ 'सर्वोदय' शब्द के व्युत्पत्तिमूलक अर्थ की ओर दृष्टिपात करना समीचीन होगा। 'सर्वेषां उदयः = सर्वोदयः-सबका उदय । उत् उपसर्गपूर्वक, गत्यर्थक इण् (धातु) में अच् प्रत्यय लगाने से उदय भाववाचक संज्ञा बनती है। 'सबकी उन्नति' इसका अभिप्राय हुआ। सबकी उन्नति ही सर्वोदय है। उपर्युक्त श्लोक में 'तीर्थंकर महावीर द्वारा प्रतिपादित, अनादिकाल से समागत' जिन-सिद्धान्त सभी आपदाओं का अन्त करने वाला सबके विकास का हेतु है । इसी तत्व को रेखांकित किया गया है। सबको उन्नति के समान अवसर प्राप्त हों, सुख और ज्ञान पर किसी का एकाधिकार न हो, सर्वोच्च पद किसी व्यक्ति, जाति, वर्ग विशेष को सम्पत्ति न हो-यही है सर्वोदयी स्थिति । १ दष्टव्य-श्री पी. एस. कुमारस्वामी की कृति-भगवान् महावीर और उनका तत्त्वदर्शन-पृ. सं. ५३७, प्रकाशक-जैन साहित्य समिति, देहली। २ दृष्टव्य- युक्त्यनुशासन श्लोक ६१ से : जैन संस्कृति के विविध आयाम and साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ P ate & Personal Use Only www.jainelibratorg
SR No.212173
Book TitleSarvodayi Vichar ki Avadharna ke Prerak Jain Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSharda Swarup
PublisherZ_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf
Publication Year1990
Total Pages3
LanguageHindi
ClassificationArticle & Social
File Size538 KB
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