________________ आचार्य विजयवल्लभसूरि स्मारक ग्रंथ अरबस्तान में मूर्तिपूजा हजरत पैगंबर के जीवन में हम पढ़ते हैं कि काबा के मंदिर में 36000 मूर्तियाँ पूजी जाती थीं। संशोधक कहते हैं कि मूर्तिपूजा जैनियों से प्रचलित है। ऋषभदेव के पुत्र बाहुबली तक्षशीला के राजा थे। ऋषभदेव ने उस तरफ विहार किया हुआ है। 'इस्लाम' शांति का पर्यायवाची है। चांदतारा का चिह्न सिद्धशिला के रूप में जैन हमेशा मानते हैं। मक्काशरीफ के किसी क्षेत्र में जीवहिंसा की मनाई है। महादेव महादेव की मान्यता के बारे में तथा स्वरूप या चरित्र के बारे में जो पुराणों में कथाएं हैं उनका समन्वय करना बड़ा कठिन है। नंदिकेश्वर की उत्पत्ति भी विरमय पैदा करती है। क्या ऋषभदेव ही महादेव के रूप में तो नहीं माने जाते होंगे ? वृषभ पर महादेवजी बैठते हैं इससे भी शायद यही अर्थ तो नहीं अभिप्रेत होगा? प्राचार्य मानतुंग ठीक ही कहते हैं "बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चितबुद्धिबोधात्। त्वं शङ्करोऽसि भुवनत्रयशङ्करत्वात् / / धाताऽसि धीरशिवमार्गविधेर्विधानात् / व्यक्तं त्वमेव भगवन् पुरुषोत्तमोऽसि ||" M eena KARISM HAANTRA Sanel SOCIENCE PARDA H alRMANAVARAN RETREES NONOCOM. in/ MONDONESIAMEND ANUARY Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org