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। संथारा-संलेषणा : समाधिमरण की कला
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प्रस्तुत सूत्र में प्रपत, नैः के पश्चात् "च" शब्द का प्रयोग की सूचना मिलने पर उनका हृदय अत्यन्त व्यथित हो जाता है। वे हुआ है, उससे अन्य मरण भी ग्रहण किए जा सकते हैं।१४४ कहते हैं- मेरी वृद्धावस्था आ चुकी है। जिससे मेरा शरीर रस और वशिष्ठ स्मृति में (९) लोष्ठ और (१०) पाषाण इन दो मरण । धातु से नीरस बन चुका है, तथापि यह निंदित शरीर अभी तक विधियों का भी उल्लेख है।
नहीं गिर रहा है। ऋषियों ने कहा कि अन्धकारयुक्त सूर्यरहित लोक रामायण और महाभारत में ऐसे अनेक प्रसंग है। जब किसी
उनके लिए नियुक्त है जो आत्मघात करते हैं। अतः मुझसे आत्मघात व्यक्ति को अपने मन की प्रतिकूल परिस्थिति का परिज्ञान हुआ
भी किया नहीं जा रहा है। बाल्मीकि रामायण,१५३ शांकर अथवा प्रियजनों के वियोग के प्रसंग उपस्थित हुए, निराशा के
भाष्य,१५४ बृहदारण्यकोपनिषद१५५ और महाभारत१५६ प्रभृति बादल उनके जीवन में उमड़ घुमड़कर मंडराने लगे, युद्ध में
ग्रन्थों में आत्मघात को अत्यन्त हीन, निम्न एवं निन्द्य माना है। साथ पराजय की स्थिति समुत्पन्न हुई तब वे व्यक्ति मरण की इन
ही जो आत्महत्या करते हैं, उनके संबंध में भी मनुस्मृति,१५७ विधियों को अपनाने की भावना व्यक्त करते हैं। उदाहरण के रूप
याज्ञवल्क्य,१५८ उषन्स्मृति,१५९ कूर्मपुराण,१६० अग्निपुराण,१६१ में, सीता को जब राम वन में अपने साथ ले जाने के लिए तैयार
पाराशरस्मृति१६२ प्रभृति ग्रन्थों में बताया है कि उन्हें जलांजलि नहीं नहीं हुए तो उसने इन्हीं विधियों द्वारा अपने प्राण त्यागने की
देनी चाहिए। वे आत्मघाती अशौच और उदक क्रिया के पात्र नहीं भावना व्यक्त की।१४५ इसी प्रकार पंचवटी में भी लक्ष्मण को राम
होते हैं। की अन्वेषणा के लिए प्रेषित करने हेतु उत्प्रेरित करते हुए सीता ने एक ओर आत्मघात को निन्द्य माना है, दूसरी ओर विशेष इसी बात को दुहराया।१४६ राम को वनवास देने के कारण पापों के प्रायश्चित के रूप में आत्मघात का समर्थन भी किया गया भरत१४७ अपनी माँ पर क्रुद्ध हुआ और उसने आवेश में मां है, और उससे आत्मशुद्धि होती है ऐसा स्पष्ट प्रतिपादन किया गया की भर्त्सना करते हुए कहा-या तो तुम धधकती हुई ज्वाला में है। जैसे मनुस्मृति में१६३ आत्मघाती, मदिरा पायी ब्राह्मण प्रविष्ट हो जाओ, या दण्डकारण्य में चली जाओ, या फांसी गुरुपत्नीगामी के लिए उग्रशस्त्र, अग्नि आदि के द्वारा आत्मघात लगाकर मर जाओ।
करने से शुद्ध होता है-ऐसा विधान है। यात्रवल्क्य स्मृति,१६४ इन सभी उद्धरणों से ज्ञात होता है कि रामायण काल में वे
गौतमस्मृति,१६५ वशिष्ट स्मृति,१६६ आपस्तंबीय धर्मसूत्र,१६७ उपाय अपनाये जाते थे। रामायण काल के पश्चात् महाभारत काल
| महाभारत१६८ आदि में इसी तरह के शुद्धि के उपाय बताए गये हैं। में भी आत्मघात के लिए इन उपायों को अपनाने के लिए तैयारी
सभी में आत्मघात का विधान है। इन विघ्नों के परिणामस्वरूप ही देखी जाती है। दुर्योधन पांडवों को देखकर ईर्ष्याग्नि में जलता है।
। प्रयाग में अक्षय बट से गंगा में कूदकर और काशी में काशी वह पांडवों के विराट वैभव को देख नहीं सकता। उनके वैभव को
| करवट लेकर आत्मघात की प्रथाएं प्रचलित हुईं। ये स्पष्ट आत्मघात देखकर वह मन ही मन कुढ़ता है और अपने विचार शकुनि के
| ही थीं, फिर भी इनसे स्वर्ग-प्राप्ति मानी जाती थी। पापी लोग इस सामने व्यक्त करता है कि मैं अग्नि में प्रविष्ट हो जाऊँगा, प्रकार की मृत्यु का वरण करते थे और यह समझते थे कि इससे विष-भक्षण कर लूँगा, जल में डूबकर प्राणों का त्याग कर दूँगा, उनके पापों का प्रायश्चित् हो जाएगा, वे शुद्ध हो जायेंगे और स्वर्ग किन्तु जीवित नहीं रह सकता।१४८
के दिव्य सुख भोगेंगे। सती दयमन्ती नल के रूप और शौर्य पर इतनी मुग्ध हो गई इस प्रकार मृत्युवरण को पवित्र और धार्मिक आचरण माना कि उसने नल से स्पष्ट शब्दों में कहा-यदि आप मेरे साथ गया है। महाभारत के अनुशासनपर्व,१६९ वनपर्व१७० और पाणिग्रहण नहीं करेंगे तो विष, अग्नि, जल या फाँसी द्वारा अपने मत्स्यपुराण१७१ में अग्निप्रवेश, जल प्रवेश, गिरिपतन, विषप्रयोग प्राण समाप्त कर दूंगी।१४९ अग्नि, जल आदि के द्वारा प्राणों का या अनशन द्वारा देहत्याग करने पर ब्रह्मलोक अथवा मुक्ति प्राप्त परित्याग करने वाला आत्महा, आत्महन, आत्मत्यागी या आत्मघाती होती है, इस प्रकार का स्पष्ट विधान है। कहलाता है।१५०
प्रयाग, सरस्वती, काशी आदि जैसे पवित्र तीर्थ स्थलों में वैदिक साहित्य में आत्मघात का निषेध करने वाले कुछ वचन आत्मघात करने वाला संसार से मुक्त होता है। इन तीर्थ स्थलों में
Pos प्राप्त होते हैं, जिनमें यह बताया गया है कि आत्मघात करने वाला जल प्रवेश या अन्य विधियों से मृत्यु प्राप्त करने के विधान भी महापापी है। ईशावास्योपनिषद् में१५१ आत्मघात करने वाले व्यक्ति मिलते हैं। महाभारत में स्पष्ट कहा है-वेद वचन से या लोक वचन परभव में कहाँ जाते हैं, उसका चित्रण करते हुए कहा है-जो से प्रयाग में मरने का विचार नहीं त्यागना चाहिए।१७२ इसी प्रकार आत्मघात करते हैं वे मरने के पश्चात् गहन अंधकार में आवत कूर्मपुराण,१७३ पद्मपुराण,१७४ स्कंदपुराण,१७५ मत्स्यपुराण,१७६ आसुरी नाम से पुकारी जाने वाली योनि में जन्म ग्रहण करते हैं। ब्रह्मपुराण,१७७ लिंगपुराण,१७८ अग्निपुराण१७९ में स्पष्ट उल्लेख है उत्तर रामचरित में१५२ लिखा है कि राजा जनक को सीतापहरण कि जो तीर्थस्थलों पर जल प्रवेश करता है या अन्य साधनों के
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