SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 80000000000000000000000000000 I . . 68500.000D5GEOGRA 0900COL00:00:00:00:00 20000000000001 PEO.30 00ROR DOE0% D 1CLES 1६५० उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ द्वारा मृत्यु का वरण करता है, भले ही वह किसी भी अवस्था में राजस्थान के राजपूतों में भी पति के पीछे सती होने के साथ हो, चाहे स्वस्थ हो, चाहे अवस्थ हो, वह अवश्य मुक्ति प्राप्त ही “जौहर" की प्रथा थी। सती पद्मिनी की कथा और अनेक करता है। राजपूतानियों के उत्सर्ग की कथाएँ राजस्थान के इतिहास में भरी यदि शरीर में असाध्य विहित अनुष्ठान करने में शरीर असमर्थ पड़ी हैं। स्थान-स्थान पर उनके स्मारक भी बने हुए हैं। राजस्थान हो जाए, उस समय वानप्रस्थी के महाप्रस्थान का भी उल्लेख विस्तार तथा दक्षिणी भारत में “कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र में भी के साथ आया है। मनुस्मृति में१८० कहा है-असाध्य रोग होने पर । अनेक स्मारक है। कई महासती कल (महासती शिला स्मारक), वानप्रस्थी ईशान दिशा की ओर मुँह करके योगनिष्ठ होकर पानी वीरगल (वीरों के शिला स्मारक), अपने राजा के लिए अपना और हवा पर रहता हुआ शरीर त्यागने तक निरन्तर गमन करता बलिदान चढ़ाने वाले वीरों के स्मारक हैं। बंगाल में तो उन्नीसवीं रहे। याज्ञवल्क्य ने१८१ भी मनु के कथन का समर्थन करते हुए। सदी तक सती-प्रथा प्रचलित थी। भारत में ही नहीं प्राचीन ग्रीक कहा-वायु भक्षण करता हुआ ईशान दिशा की ओर मुड़कर प्रस्थान और मिश्र में भी यह प्रथा प्रचलित थी। यदि स्त्रियां सती होना नहीं करे। महाभारत में१८२ पांडवों के हिमालय की ओर महाप्रस्थान का चाहती तो भी उन्हें बलात् सती होने के लिए बाध्य किया जाता था। वर्णन है। सर्वप्रथम द्रौपदी पृथ्वी पर गिर पड़ी, उसके पश्चात् चिताओं के आस-पास जोर से वाद्य बजाए जाते जिससे उसका सहदेव, नकुल, अर्जुन और भीम भूमि पर गिरकर मृत्यु को प्राप्त करुण क्रन्दन किसी को भी सुनाई न दे सके। हुए और सभी स्वर्ग पहुंचे। युधिष्ठिर भी उसी शरीर से स्वर्ग पहुंचे। प्राचीनकाल में यूनान में प्लेटो और अरस्तू ने सती प्रथा का डॉ. पांडुरंग वामन काणे ने१८३ वाल्मीकि रामायण तथा विरोध किया था, आधुनिक काल में भारत में राजा राममोहन राय अन्यान्य वैदिक धर्म ग्रन्थों व शिलालेखों के आधार से शरभंग, के विशेष प्रयत्न से तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने सती प्रथा के महाराजा रघु, कलचुरि के राजा गांगेय, चन्देल कुल के राजा विरुद्ध कानून बनाकर इसका अन्त कर दिया था। रूस में गंगदेव, चालुक्य राजा सोमेश्वर प्रभृति के स्वेच्छापूर्वक मृत्यु वरण १७-१८वीं सदी में धार्मिक उद्देश्य से पूरे के पूरे परिवार अपने का उल्लेख किया है। को जला देते थे। इस प्रथा का भी विज्ञ व्यक्तियों ने अत्यधिक विरोध किया था। वानप्रस्थी की तरह गृहस्थ के लिए भी उसी प्रकार का विधान है। जिसके शरीर में व्याधि हो, वृद्धावस्था हो, जो शौचशून्य हो इस्लाम धर्म में स्वैच्छिक मृत्यु का किंचित् मात्र भी समर्थन नहीं चुका हो वह भी अग्नि-प्रवेश, गिरिपतन या अनशन द्वारा मृत्यु को है। उनका मानना है-खुदा की अनुमति के बिना निश्चित समय से वरण करे, इस प्रकार का उल्लेख याज्ञवल्क्य स्मृति१८४ अत्रि । पूर्व किसी को भी मारना ठीक नहीं है। इसी प्रकार ईसाई धर्म में स्मृति१८५ आदि ग्रन्थों में हैं। भी आत्महत्या का विरोध किया गया है। ईसाइयों का मानना है-न। तुम्हें दूसरों को मारना है और न स्वयं मरना है।१९१ वैदिक ग्रन्थों में पति की मृत्यु के पश्चात् स्त्री को पति के शव के साथ अग्नि में प्रवेश हो जाना चाहिए। अंगिरस ने कहा वैदिक परम्परा के ग्रन्थों में एक ओर जहाँ आत्महत्या को ब्राह्मण, स्त्री, पति की चिता पर उसके शव के साथ मरण कर । महापाप बताया है, वहाँ दूसरी ओर आत्महत्या से स्वर्ग प्राप्त होता सकती है। मिताक्षरी१८६ टीका में गर्भावस्था आदि विशेष है-ऐसा भी स्पष्ट विधान किया गया है। उदाहरणार्थ वशिष्ठ ने परिस्थितियों के अतिरिक्त पति का अनुगमन करना ब्राह्मण से लेकर । कहा-पर्वत से गिरकर प्राण त्याग करने से राज्यलाभ मिलता है चाण्डाल तक सभी वर्ग की स्त्रियों के लिए आवश्यक माना है।। तथा अनशन कर प्राण त्यागने से स्वर्ग की उपलब्धि होती है।१९२ विष्णुपुराण१८७ के अनुसार रुक्मिणी आदि कृष्ण पलियों ने कृष्ण ब्यास ने कहा-जल में डूबकर प्राण त्याग करने वाला सात हजार के शव के साथ अग्नि प्रवेश किया। रामायण१८८ काल में सती प्रथा वर्षों तक, अग्नि में प्रविष्ट होने वाला चौदह हजार वर्ष तक फल के अनेक उदाहरण प्राप्त होते हैं। महाभारत में सती प्रथा के संबंध प्राप्त करता है, अनशन कर प्राण त्यागने वाले के लिए तो फल में स्पष्ट विचार प्राप्त होते हैं। महाभारत में१८९ कहा है-यदि प्राप्ति के वर्षों की संख्या की परिगणना नहीं की जा सकती। पतिव्रता स्त्री पति के पूर्व मर जाए तो वह परलोक में जाकर पति १९३महाभारत के अनुशासनपर्व१९४ में बताया है जो आमरण की प्रतीक्षा करे, और पहले पति मर जाए तो पतिव्रता स्त्री उसका अनशन का व्रत लेता है, उसके लिए सर्वत्र सुख ही सुख है। अनुगमन करें। अनशन से स्वर्ग की उपलब्धि होती है। डॉ. उपेन्द्र ठाकुर १९० का मंतव्य है कि सती प्रथा के पीछे । समाक्षा: धार्मिक भावनाएं अंगड़ाइयां ले रही थीं। हारीत के मन्तव्यानुसार वैदिक परम्परा में मरण की विविध विधाओं का वर्णन है। उनमें जो स्त्री पति के साथ सती होती है, वह स्त्री तीन परिवारों-माता, परस्पर विरोधी वचन भी उपलब्ध होते हैं। कहीं पर आत्मघात को पिता और पति के परिवारों को पवित्र करती है। निकृष्ट माना गया और उसके लिए वैदिक परम्परा मान्य जो भी । देर
SR No.212096
Book TitleSanthara Sanleshna Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni Shastri
PublisherZ_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf
Publication Year
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationArticle & Achar
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy