________________ 642 जैन विद्या के आयाम खण्ड-६ सूत्र 2. अब्भन्तरानि चेव बाहिरानि तानि सक्कारोन्ति गरुं करोन्तिमानेन्ति त्वं वृषभः पुष्टिवर्धन- वृषभ = वलिष्ट 1.31.5. पूजेन्ति। 15. देखें- ऋषभ एवं बृषभ शब्द- संस्कृत हिन्दी कोश, वामन ..वज्जीनं अरहन्तेसु धम्मिका रक्खाआवरणगुत्ति, सुसंविहिता शिवराम आप्टे, मोतीलाल बनारसी दास, दिल्ली 1984, पृष्ठ किन्ति अनागता च अरहन्तो विजितं आगच्छेय्यं आगता च 224 एवं 973 अरहन्तो विजिते फासु विहरेय्यु।-दीघनिकाय महापरिनिव्वाणसुत्तं, 16. वृषभः = वर्षा करने वाला 5.58.3 3 / 1 / 4 (नालन्दा देवनागरी पालि सिरीज) ज्ञातव्य है कि स्वामी दयानन्द ने इन्द्र के साथ प्रयुक्त वृषभ शब्द देखें- संस्कृत-हिन्दी कोश - बृहत् (वि.) स्त्री. ती, बृहती नपुं. को इन्द्र का विशेषण मानकर उसका अर्थ वर्षा करने वाला किया 1 वेद 2 सामवेद का मंत्र, 3 ब्रह्म (सं. वामन शिवराम आप्टे, है। देखें- 5.43.13, ५.५८.६ब मोतीलाल बनारसीदास, देहली-७ द्वि. सं. 1984, पृ. 720) 17. वृषभ: बृहस्पति-कामनाओं के वर्षक बृहस्पति- 10.92.90. देखें- देवो देयान, यजत्विग्नरर्हन्। ऋग्वेद, 1.94.1, वृषभ: प्रजां वर्षतीति वाति बृहतिरेत इति वा तद वषकर्मा वर्षणाद 2.3.1, 3, 2.33.10, 5.7 5.52.5, 5.87.5, वृषभः। 7.18.22, 10.99.7. -निरुक्तम् (यास्कमहर्षि प्रकाशितं) 9.22.1. वैदिक पदानुक्रम-कोष, प्रथमखण्ड: विश्वेश्वरानन्द वैदिक 18. अनर्थका हि मन्त्राः - निरुक्त, अध्याय 1, खण्ड 15, पाद 5, शोधसंस्थान, होशियार पुर, 1976, पृ. 518. जुद्धारिहं खलु दुल्लभ। - आचारांग, 1.1.5.3 -खेमराज श्रीकृष्णदास, मुम्बय्यां संवत् 1982. इमेण चेव जुज्झाहि, कि ते जुज्झेण बज्झओ- आचारांग, 19. ऋग्वेद भाषाभाष्य - दयानन्द सरस्वती - दयानन्द संस्थान, नई 1.1.5.3 दिल्ली-५ 10. (A) Radha Krishnan-Indian philosophy (Ist edi- देखें- ऋग्वेद, 10.111.2 का भाष्य। tion) Vol.1, p. 287. 20. ऋग्वेद का सुबोध भाष्य, पद्मभूषण डॉ. श्री पाद दामोदर (B) Indian Antiquary, Vol. IX, Page 163. सतवलेकर, स्वाध्याय मण्डल पारडी - जिला बलसाढ, 1985 11. बर्हिषि तस्मिन्नेव विष्णुदत्त भगवान् परमर्षिभिः नाभेः प्रिय देखें-ऋग्वेद, 10.111.2 का भाष्य। चिकीर्षया तदवरोधाय ने मरुदेव्यां धर्मान् दर्शयितु कामो 21. वही, देखें-ऋग्वेद, 4.58.3. वातरशनानां श्रमणानामृषीणामूर्ध्वमन्धिनां शुक्लया तन्वावतार।- 22.. ऋग्वेद भाषा भाष्य, दयानन्द सरस्वती, दयानन्द संस्थान, नई श्रीमद्भागवत, 5.3.20 दिल्ली-५ देखें- (अ) लिंगपुराण, 48.19-23. देखें - ऋग्वेद, 4.58.3 (ब) शिवपुराण, 52.85. भक्तामरस्तोत्र (मानतुंग), 23, 24, 25 (स) आग्नेयपुराण, 10.11-12. त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांस - (द) ब्रह्माण्डपुराण, 14.53. मादित्यवर्णममलं तमसः परस्तात् (इ) विष्णुपुराण-द्वितीयांश अ. 1.26-27. त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्यु (एफ) कूर्मपुराण, 41.37-38. नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र ! पन्थाः।।२३।। (जी) वराहपुराण, अ. 74. त्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसंख्यमाद्यं (एच) स्कन्धपुराण, अध्याय 37. ब्रह्माणमीश्वरमनन्तमनङ्गकेतुम (आई) मार्कण्डेयपुराण, अध्याय 50 / 39-41. योगीश्वरं विदितयोगमनेकमेकं देखें-अहिंसावाणी - तीर्थंकर भ. ऋषभदेव, विशेषांक वर्ष 7 ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः।।२४।। अंक 1-2. बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चितबुद्धिबोधात् मरुपुत्र ऋषभ - श्री राजाराम जैन, पृ.८७-९२. त्वं शङ्करोऽसि भुवनत्रयशङ्करत्वात् 13. वृषभ यथा शृंगे शिशान:दविध्वत्- वृषभ = बैल 8.60.13, धातासि धीर शिवमार्गविधेर्विधानाद् 6.16.47, 7.19.1. व्यक्तं त्वमेव भगवन् पुरुषोत्तमाऽसि।।२५॥ 14. वृषभः = इन्द्रः वजं युजं- वृषभ = बलवान 1.33.10. नैनतर गन्धों में ऋषभ हेतु देखे जैन रूपन(Psher).50-62 12. Jain Education International . For Private &Personal Use Only www.jainelibrary.org