________________ हो जाने के कारण ही वह किसी पारमेश्वरी शक्ति की जीवन-दर्शन श्रमण-संस्कृति के जीवन-दर्शन का ही कल्पना कर उसके प्रति समर्पित हो जाता है। परवत्ती- परवर्ती व्यापक विस्तार है, जिसकी उदात्त विचारधारा कालीन भक्त कवि चण्डीदास की प्रसिद्ध काव्य-पंक्ति- परम्परानुक्रम से विकसित होकर आज की सामाजिक एवं 'सबार ऊपरे मानुस सत्य में श्रमण-संस्कृति का ही उदात्त आर्थिक अभ्युत्थानमूलक राष्ट्रीय योजना विंशसूत्री कार्यदृष्टिकोण समाहित है। क्रम से आ जुड़ी है। इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति न . होगा कि राष्ट्रीय अभियान के प्रत्येक पड़ाव पर या श्रमण-संस्कृति के उदात्त विचारप्रधान दार्शनिक सामाजिक जीवन के हर मोड़ पर प्रगति और उत्कर्ष का चिन्तन ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को भी अनुकूलित मन्त्र फूंकनेवाली श्रमण-संस्कृति को किसी विशिष्ट देश, किया था और गाँधीजी के प्रसिद्ध ग्यारह व्रतों में प्रारम्भ काल, आयु, नाम, गोत्र आदि की सीमा में रखकर देखने के पाँच व्रत भगवान महावीर के ही पंचयाम धर्म से की अपेक्षा सम्पूर्ण विश्व के सन्दर्भ में मंगलकारी उदात्त आकलित हैं। कहना यह चाहिए कि महात्मा गाँधी का दृष्टिकोण का ही पर्याय समझना समीचीन है। 22 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org