________________ 104 प्रो० भागचन्द्र जैन भी झुका, उसमें एकान्तिक दृष्टि ही छिपी रही, पर महावीर ने उसमें 'स्यात्' जैसे निश्चयवाचक पद को जोड़कर उस दोष से अपने को बचा लिया। इसलिए बुद्ध का विभज्जवाद सीमित और एकान्तिक दिखाई देता है जबकि महावीर का विभज्जवाद असीमित और अनेकान्तिक प्रतीत होता है / बुद्ध का विभज्जवाद अव्याकृत से चलकर मध्यमप्रतिपदा तक पहुँचा, पर महावीर के विभज्जवाद ने सप्तभंगी, नय और निक्षेप की यात्रा की। बुद्ध के विभज्जवाद पर उतना अधिक चिन्तन नहीं हो सका जितना महावीर के विभज्जवाद अथवा अनेकान्तवाद पर हुआ। फलतः बुद्ध का विभज्जवाद अनेकान्तवादी होने पर भी एकान्तवाद की ओर अधिक झुका पर महावीर का विभज्जवाद अनेकान्तवाद को ही प्रारम्भ से लेकर अन्त तक पकड़े रहा। यही कारण है कि 'स्याद्वाद पदलाञ्छनः" जैसे शब्दों का प्रयोग महावीर के साथ ही हुआ है। बुद्ध ने आचार और विचार में मध्यममार्ग (मज्झिमपटिपदा) को अपनाया और महावीर ने अनेकान्त शैली का आश्रय लिया। दोनों शैलियों ने अपने-अपने ढंग से उत्तरकाल में विकास किया। दार्शनिक क्षेत्र में दोनों महापुरुषों का यही प्रदेय था / ज्ञान के संदर्भ में उनका यही योगदान था / अध्यक्ष, पालि-प्राकृत विभाग नागपुर विश्वविद्यालय न्य एक्सटेंशन एरिया सदर, नागपुर-४४०००१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org