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शिक्षा और छात्र मनोविज्ञान
Dडॉ० जी०सी० राय (आचार्य, मनोविज्ञान विभाग, उदयपुर विश्वविद्यालय, उदयपुर)
आधुनिक युग को प्रगतिशील बनाने में शिक्षा का महत्त्व सर्वोपरि है। शिक्षा वैयक्तिक तथा सामाजिक परिवर्तन का शिलाधार है। शिक्षा के द्वारा छात्रों के ज्ञान में वृद्धि होती है और उनकी मनोवृत्ति का विकास भी होता है । आचार-विचार बनते हैं। जीवन को लक्ष्य की ओर ले जाने में शिक्षा की भूमिका प्रमुख है।
__ भारत में स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद तैतीस वर्ष से अधिक हो चुके हैं। परन्तु हमने शिक्षा की ओर समुचित ध्यान नहीं दिया और न उसका अर्थ ही स्पष्ट रूप से समझा है। अनेक लोग अभी भी शिक्षा का अर्थ पाठशाला में अध्यापन से लगाते हैं और शिक्षा का क्षेत्र विद्यालय की चारदीवारी तक ही सीमित रखते हैं। तदनुसार शिक्षा का संकुचित उद्देश्य छात्रों को परीक्षा में उत्तीर्ण कराने तथा उपाधि वितरित करने तक ही है। शिक्षा का वास्तविक अर्थ विद्यालय की शिक्षा से कहीं अधिक व्यापक है। शिक्षा का तात्पर्य छात्रों का सर्वांगीण विकास करना है। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा है :
"By education, I mean all round drawing out the best in child and man—body, mind and spirit."
इस प्रकार शिक्षा के बृहत् स्वरूप के अन्तर्गत छात्र का शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक विकास करना है। शिक्षा का उद्देश्य न केवल छात्रों को उपाधियाँ देना है बल्कि उन्हें अपने भावी जीवन ब समाज में समायोजित होने में सहायता देना भी है।
शिक्षा के क्षेत्र में आज का युग छात्र-युग कहा जाता है । यह आधुनिक शिक्षा की व्यापकता का द्योतक है । अब शिक्षा अध्यापक केन्द्रित न होकर छात्र-केन्द्रित है । आधुनिक शिक्षा, छात्रों की रुचियों, क्षमताओं, आवश्यकताओं तथा लक्ष्यों के अनुरूप दी जाती है, न कि अध्यापक की इच्छानुसार । इस तरह आज की शिक्षा लोकतान्त्रिक (Democratic) सिद्धान्त पर आधारित है। इस सिद्धान्त के अनुसार छात्रों को शिक्षा प्राप्त करने की समान सुविधा (Equality of opportunity) मिलना आवश्यक है। परन्तु इस सुविधा का मनोवैज्ञानिक पक्ष समझना आवश्यक है । समान सुविधा का अर्थ सभी छात्रों को एक समान या एक प्रकार की शिक्षा मिलने से नहीं है बल्कि उनकी योग्यता के अनुसार ही शिक्षा प्राप्त करने का मौका देना है। उदाहरण के लिए, यदि छात्र में उच्च योग्यताएँ होंगी तभी उसे उच्च शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा देना उचित है अन्यथा उच्च शिक्षा में वह व्यक्ति अपनी मानसिक शक्ति को नष्ट ही करेगा । फिर, सभी छात्रों को विज्ञान कक्षाओं में प्रवेश देना (जिसकी कि अक्सर मांग होती है), उनके लिए सुविधाजनक नहीं होगा क्योंकि विभिन्न छात्रों में विभिन्न प्रकार की अभिक्षमताएं होती हैं। उदाहरण के लिए, किसी छात्र में विज्ञान की, किसी में कला की, किसी में वाणिज्यशास्त्र की। वैज्ञानिक अभिक्षमता वाले छात्र को विज्ञान में, कला-अभिक्षमता वाले छात्र को कला में तथा वाणिज्य-अभिक्षमता वाले छात्र को वाणिज्य में प्रवेश देना ही समान सुविधा देना है।
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