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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड
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समाज मनोविज्ञान की दृष्टि से शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिश है जो कि लिक तथा छात्र के बीच होती है। प्रमुख विशेषज्ञ एडम्स ने शिक्षाको वि-अक्रिया (Bipolar Process) कहा है शिक्षा-कम में अध्यापक तथा छात्र के बीच जो अन्तर्क्रिया ( Inter-action) होती है उसमें छात्र का पक्ष उतना ही महत्त्वपूर्ण होता है जितना कि अध्यापक का। अध्यापक ज्ञान प्रसारित करता है तथा छात्र भी अपनी प्रक्रियाओं को देकर अपनी कठिनाइयों को बताकर व अपने सुझावों को देकर पाठ के विस्तार में सतत सहयोग देता है। छात्र द्वारा दी गयी प्रतिपुष्टि (Feedback ) से शिक्षक एक दिशा पाता है और अध्यापन में अधिक सफलता पा सकता है। फ्लैण्डर्स ( Flanders) नामक प्रमुख शिक्षा शास्त्री ने शिक्षा में इस प्रकार की प्रतिपुष्टि को अत्यन्त आवश्यक बताया है ।
हमारे भारतीय समाज में शैक्षिक, आर्थिक, व्यावसायिक तथा अन्य प्रकार की कमियाँ हैं, जिनके कारण शिक्षा-कम का समुचित ढंग से चलाना कठिन हो जाता है। ऐसी कठिन स्थिति में शिक्षा कार्य करने में पर्याप्त धैर्य, उत्साह व सहानुभूति की आवश्यकता है। मेरे विचार से छात्र- मनोविज्ञान का मुख्य तत्त्व है छात्रों के प्रति सहानुभूति का दृष्टिकोण रखना। यदि अध्यापक माता-पिता तथा शैक्षिक अधिकारी छात्रों की तथा उनकी समस्याओं की ओर सहानुभूति रखें तो छात्र शिक्षा प्राप्त करने में रुचि लेते हैं और कठिनाइयों का सहर्ष सामना कर लेते हैं। छात्रों को स्नेह देना एक दीपक में तेल देने के समान है जिसके आधार पर वह प्रज्वलित तथा प्रकाशित होता है । आजकल के छात्र बड़े संवेदनशील (Sensitive) होते हैं। यदि अध्यापकरण उन्हें सामाजिक व विद्यालय की कठिनाइयों और कमियों का समुचित प्रत्यक्षण करा दें तो छात्र उन कमियों के बावजूद भी सहर्ष कठिनाइयों का सामना करते हुए भी शिक्षाक्रम में लीन रह सकते हैं। अस्तु, छात्रों को प्रस्तुत कठिनाइयों की अनुभूति कराना आवश्यक है । इसके विपरीत यदि उन्हें सुविधा न देने का ठेठ जवाब दिया जाय या कार्य न करने के लिए उनका तिरस्कार किया जाय तो उन्हें ठेस पहुँचेगी तथा उनकी भावनाओं का दमन होगा और फायड के अनुसार इस प्रकार का दमन बालक के व्यक्तित्व के समुचित विकास में अवरोध उत्पन्न करेगा ।
आज हमारे विद्यालयों में छात्र अध्यापक टकराव रहता है। बहुत से छात्र मन लगाकर नहीं पढ़ते हैं, बल्कि विध्वंसात्मक कार्यवाहियों में भाग लेते हैं जिससे कि विद्यालय में सुचारू रूप से शिवाश्रम नहीं चल पाता है। शिक्षा के क्षेत्र में यह प्रमुख समस्या है। इस समस्या का समाधान करने के लिए मनोवैज्ञानिक उपागम (Psychological approach) आवश्यक है । उसी के आधार पर प्रस्तुत लेखक के निम्नलिखित सुझाव हैं:
१. छात्र सम्पूर्ण शिक्षाक्रम के केन्द्रविन्दु है। अस्तु, शिक्षा उनकी रुचियों व क्षमताओं के आधार पर दी जाय तो शिक्षा कार्यक्रम सुचारू रूप से चलेगा ।
२. छात्रों को शिक्षा क्रम में प्रेरित करने के लिए पारितोषक आदि देने के अतिरिक्त अध्यापक अपने आदर्शजीवन से भी उन्हें प्रेरित करें तो प्रेरणा अधिक प्रभावशाली होती ।
३. आधुनिक मनोवैज्ञानिक शिक्षण विधियों ( Teaching Methods ), जैसे - Demonstration Method, Project Method, Field-trip Method, Audio Visual Method आदि का उपयोग करने से छात्र तीव्रता व कुशलता से शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं ।
४. अध्यापन की शिक्षण विधियों से भी अधिक आवश्यक छात्रों की अधिगम विधियां (Learning Methods ) है, क्योंकि अध्यापक अच्छी विधि से शिक्षण दे, फिर भी यदि छात्र समुचित विधि से न सीखें तो अध्यापक का कार्य विफल हो जाता है। अस्तु पाठ्य सामग्री छात्रों की अधिगम योग्यता आदि को ध्यान में रखकर उन्हें Whole Method, Part Method, Mass Method, Space Method, Fro rammed Learning Method आदि से सीखने के लिए समुचित कार्यक्रम बनाना आवश्यक है।
५. छात्रों की समस्याओं तथा कठिनाइयों पर सहानुभूति से तथा विशिष्ट वातावरण में विचार करने के लिए Joint Consultative Machinery का आयोजन हो जिनमें छात्र अध्यापक, अधिकारी वर्ग तथा अभिभावक भाग लें। इससे समस्याओं को सुलझाने व उनका हल निकालने में सुविधा होगी ।
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