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________________ ध्यान अशुभ-ध्यान हैं तथा धर्म और शुक्ल ध्यान शुभ ध्यान हैं। जीव और संसार के स्वरूप का विचार धर्म-ध्यान और समाधि-रूप से आत्म-चिंतन शुक्ल ध्यान माना गया है। तत्त - तत्व का प्राकृत-अपभ्रंश में तत्त होता है। जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष जैन-धर्म में सात तत्व माने गये हैं। जैन दर्शन में इन सात तत्वों का सोच ही 'तत्व चिंतन' कहलाता है। तत्व चिंतन बड़ा ही वैज्ञानिक सोच है। जीव को अब वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं। जीव की गति मोक्ष है। पर जब तक मोक्ष नहीं तब तक जीव दुःख भोगता ही रहेगा। प्राकृत - अपभ्रंश जैन साहित्य बहुत विशाल है। जैन-दार्शनिक-शब्दावालियों का सही-सही शुद्ध पाठ और अर्थ नहीं होने से, जैन-साहित्य का उचित मूल्यांकन नहीं हो पाया है। इस क्षेत्र में हमारे विद्वानों ने अथक परिश्रम से बहुत काम किया है। पर सर्व सम्मत पाठ और अर्थ आज भी उपलब्ध नहीं है। हम यह भी निर्धारित नहीं कर सके है कि णमोकारमंत्र सही है या नवकारमंत्र सही है। णमोअरहंताणं है तो कहीं णमोअरिहंताणं है। विद्वानों को चाहिए, वे एक सर्व-सम्मत पाठ और अर्थ निर्धारित कर दें। 86, तिलक पथ, इंदौर (म.प्र.) सच्चा साधक या महापुरूष वही कहला सकता है जो दूसरों के दुःख को अपना दुःख मानता है। दुसरों की विपदाओं को अपनी विपदा समझता है और दुसरों के घात को अपने मर्मान्तक दुःख का कारण मानता है। अनेक वर्षों तक तपस्या करके देह को सुखाने की अपेक्षा एक प्राणा के जीवन का रक्षण करतना अधिक महत्व पूर्ण है। जिसके हृदय में ऐसी भावनाएँ है वह स्वयं अपना तथा औरों का कल्याण कर सकता हैं तथा अनन्त सुख का स्हायी बन सकता है। ऐसा दिव्यक्त्या पुरूष ही अपने जन्म-जन्मान्तरों का क्रम रोक कर मय भ्रमण सो छुटकारा तपा सकता है। युवाचार्य श्री मधुकर मुनि (209) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211980
Book TitleShabda Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherZ_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf
Publication Year1992
Total Pages3
LanguageHindi
ClassificationArticle & Dictionary
File Size410 KB
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