SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य मुनिजिनविजय : वैशालीनायक चेटक और सिंधुसौवीर का राजा उदायन : 581 एक विलक्षण परम्परासाम्य जिस प्रकार जैन-ग्रंथों में वीतिभय के उदायन और चन्दन काट की मूर्ति विषयक वृतान्त मिलता है, उसी प्रकार बौद्ध ग्रंथों में भी कोशाम्बी के उदायन और बुद्ध मूर्ति विषयक वृतान्त मिलता है. बौद्ध श्रमण यवनचंक अथवा व्हेतत्संग जब भारत में आया था, उस समय यह कथा बौद्धों में भी बहुत प्रचलित थी, उसने अपने प्रवासवृतान्त में कोशाम्बी का वर्णन करते हुए लिखा है कि ---- 'कोशाम्बी नगर में एक पुराना महल है. उसमें 600 फीट ऊंचा एवं विहार है: इस विहार में चन्दनकाष्ठ की बुद्धप्रतिमा है. उस बुद्धप्रतिमा पर पाषाण का बना हुआ छत्र है. कहा जाता है कि यह कृति उदायन राजा की है, यह मूर्ति बड़ी प्रभावशालिनी है. इसमें देवी तेज रहा हुआ है और यह समय-समय पर प्रकाश देती रहती है. इस मूर्ति को इस स्थान से हटाने के लिये राजाओं ने प्रयत्न किये थे और उठाने के लिये कई आदमी लगाये थे लेकिन उसे कोई हिला भी नहीं सका. तब वे लोग उस मूर्ति की प्रतिकृति बनाकर पूजा करने लगे और उसमें मूल मूर्ति की-सी श्रद्धा रखने लगे.'' इसी लेखक ने अपने प्रदेश के पिमा शहर में इसी प्रकार की एक अन्य मूर्ति का भी उल्लेख किया है. वह लिखता है'यहां-पिमा शहर में भगवान् बुद्ध की खड़ी आकृति में बनी हुई चन्दनकाष्ठ की एक विशालमूर्ति है, यह 20 फीट ऊंची है और बड़ी चमत्कारिक है. इसमें से प्रकाश निकलता रहता है, रुग्ण जन अगर सोने के बरख में उसकी पूजा करें तो उनका रोग मिट जाता है. ऐसी यहां के लोगों की धारणा है. जो लोग अन्तःकरण पूर्वक इसकी प्रार्थना करते हैं, उनका मनोवांछित सिद्ध हो जाता है. यहां के लोग कहते हैं कि जब बुद्ध जीवित थे उस समय कौशाम्बी के राजा उदायन ने इस मूर्ति को बनवाया था. जब भगवान् बुद्ध का निर्वाण हो गया तब यह मूर्ति अपने आप आकाश में उड़कर इस राज्य के उत्तर में आये हुए 'हो-लो लो-किय' नाम के शहर में आकर रही. यहाँ के लोग धनिक और बड़े-वैभवशाली थे और मिथ्यामत में अनुरक्त थे. उनके मन में किसी भी धर्म के प्रति मान-सम्मान नहीं था. जिस दिन से यह मूर्ति आई उस दिन से देवी चमत्कार होने लगे, लेकिन लोगों का ध्यान इस मूर्ति की और नहीं गया.. उसके बाद एक अर्हत् वहाँ आया और वन्दन कर उस मूर्ति की पूजा करने लगा. उस अर्हत् की विचित्र वेष-भूषा देख कर लोग डर गये और उन्होंने राजा को जाकर सूचना दी. राजा ने आज्ञा दी कि उस पुरुष को धूल और रेती से ढंक दो. लोगों ने राजाज्ञा के अनुसार उस अर्हत् की बड़ी दुर्दशा की और उसे धूल और रेती के ढेर में दबा दिया. उसे अन्न जल भी नहीं दिया. किन्तु एक व्यक्ति को, जो उस मूर्ति की पूजा करता था, लोगों पर बड़ा क्रोध आया, उसने छुप कर उस अर्हत् को भोजन दिया. जाते समय अर्हत् उस व्यक्ति से बोला-'आज से सातवें दिन इस नगर पर रेती और धूल की वर्षा होगी जिससे सारा नगर रेती और धूल में दब जायगा. कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं रह सकेगा. अगर तुझे प्राण बचाना हो तो तू यहाँ से भाग जा. यहाँ के लोगों ने मेरी जो दुर्दशा की है उसी के फलस्वरूप यह नगर भी धूलिवर्षा से नष्ट हो जायगा. इतना कह कर अर्हत् अदृश्य हो गया. तब बह आदमी शहर में आकर अपने सगे संबंधियों को कहने लगा कि आज से सातवें दिन यह नगर धूलिवर्षा से नष्ट हो जायगा. इस बात पर लोग उसकी हँसी उड़ाने लगे. दूसरे दिन एक बड़ी आँधी आई और वह नगर की सारी गन्दी धूल उड़ाकर आकाश में ले गई. बदले में कीमती पत्थर आकाश से गिरे. इस घटना से तो लोग उसकी और हँसी उड़ाने लगे. किन्तु उसे अर्हत् के वचन पर विश्वास था. उसने गुप्त रूप से नगर से बाहर निकलने के लिये रास्ता बनाया और वह जमीन में छुपा रहा. ठीक सातवें दिन धूल की भयंकर वर्षा हुई और सारा नगर धूल में दब गया. वह व्यक्ति सुरंग में जो भी परिचय मिला है, उसे उन्होंने अपनी टीका में उद्धृत किया है. उसमें सुवर्णगुलिका के लिये उदायन का चण्डप्रद्योत के साथ हुए युद्ध की परम्परा अति प्राचीन और सत्य पर आधारित है. 1. हुवेनत्संग भी अपने साथ इस मूर्ति की प्रतिकृति बनाके ले गया था. देखो Beals Record of Western Countries, Book I,पृ० 234 और प्रस्तावना पृ० 20. Jain Edu 4 1 aina orary.org
SR No.211964
Book TitleVaishalinayak Chetak aur Sindhu Sauvir ka Raja Udayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherZ_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf
Publication Year1965
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy