________________ 588 : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय समय महावीर के निर्वाण के बाद की द्वितीय शताब्दी बताती है. ऐतिहासिक दृष्टया नियुक्ति के कर्ता भद्रबाहु का समय इतना प्राचीन नहीं लगता. हां, टीकाकारों की अपेक्षा उनका समय अधिक प्राचीन है. इस कारण टीकाकारों द्वारा लिखित उदायन की इस कथा का प्रचलन बहुत समय पहले था, यह निश्चित है. मूर्तिविषयक वर्णन जो भी हो किन्तु जैन कथा और सूत्रों के आधार से इतना तो अवश्य माना जा सकता है कि महावीर के समय सिन्धुसौवीर नाम के देश में बीतिभय नामका नगर अवश्य था. और वहाँ उदायन नाम का राजा राज्य करता था. उसकी स्त्री का नाम प्रभावती था, जो वैशाली के राजा चेटक की पुत्री होती थी. अभीति उसका पुत्र था अभीति के पिता ने किसी कारण से उसे राज्य नहीं दिया और इसी वजह से वह चम्पा में कोणिक राजा के आश्रय में जाकर रहा. राजा महासेन के साथ उदायन का युद्ध हुआ होगा और उसमें उदायन विजयी हुआ होगा.१ होंगे. जिस द्यूत का नल राजा भी त्याग नहीं कर सका उसका वह अपने समस्त राज्य में बहिष्कार करेगा. कुक्कुटयुद्ध, कपोतयुद्ध आदि नृशंस मनोरंजनों को वह अपने समस्त राज्य में बंद करा देगा. निःसीम वैभववाला वह राजा प्रत्येक ग्राम में जिनमन्दिर बनवा कर सारे पृथ्वीमण्डल को जिनमन्दिरों से विभूषित करेगा. समुद्रपर्यन्त प्रत्येक मार्ग और नगर में प्रतिमा की रथयात्रा का महोत्सव कराएगा. द्रव्य के विपुल दान से वह अपने नाम का संवत्सर चलाएगा. ऐसा वह महान् प्रतापशाली राजा एक दिन गुरुमुख से कपिल मुनि द्वारा प्रतिष्ठित एवं पृथ्वी में दबी हुई उस दिव्य प्रतिमा के विषय में बात सुनेगा. बात सुनते ही विश्वपावनी उस मूर्ति को हस्तगत करने का विचार करेगा. मन के उत्साह और शुभ निमित्त से उसे यह विश्वास हो जायगा कि मैं उस दिव्य प्रतिमा को प्राप्त कर सकूँगा. तब वह गुरु की आज्ञा से योग्य पुरुषों को वीतिभय के उद्ध्वस्त स्थल पर भेजेगा. वे पुरुष वहां जाकर जमीन खोदेंगे. उस समय राजा के सत्व से शासन देव भी वहां उपस्थित रहेंगे. जमीन को थोड़ा खोदने पर वह दिव्य प्रतिमा निकलेगी. उस प्रतिमा के साथ उदायन का आज्ञालेख भी मिलेगा. वे पुरुष बड़ी भक्ति और श्रद्धा से उसका पूजन करेंगे. स्त्रियां रास गाकर बाजे बजाकर भक्ति करेगी. उस प्रतिमा के सामने सतत नृत्य संगीत होता रहेगा. वे दक्ष पुरुष मूर्ति को रथ पर आसीन करके पाटन की सीमा पर ले आवेंगे. प्रतिमा के आगे की खबर सुन कर वह राजा चतुरंगी सेना और बड़े संघ के साथ उत्सव पूर्वक उसके सामने जायगा. बाद में वह अपने हाथों से प्रतिमा को रथ से निकाल कर हाथी पर आरूढ़ करेगा और बड़े उत्सव के साथ नगरप्रवेश कराएगा. उस प्रतिमा के लिये वह एक विशाल स्फटिक पाषाण का मन्दिर बनवाएगा. वह मन्दिर अतृपद पर्वत के मन्दिर की तरह अत्यन्त भव्य होगा. उस में बड़े उत्सव के साथ प्रतिमा को प्रतिष्ठित करेगा. इस प्रकार से स्थापित की गई प्रतिमा के प्रभाव से उस राजा की कीर्ति, यश, प्रभाव, संपत्ति खूब बढ़ेगी. गुरुभक्ति से वह राजा भारतवर्ष में तेरे पिता की तरह ही प्रभावशाली होगा.' त्रिषष्ठि० पर्व० दसवां, पृ० 228-231. 1. सुवर्णगुलिका के निमित्त चण्डप्रद्योत के साथ हुए युद्ध की किंवदन्ती में भी प्राचीन प्रमाण है, ऐसा एक सूत्र के सूचन के आधार पर अनुमान होता है. भगवती सूत्र जितने ही प्राचीन सूत्र प्रश्नव्याकरण में जिन स्त्रियों के लिये युद्ध हुए थे उनके नाम दिये हैं, उनमें सुवर्णगुलिका का भी एक नाम आता है. वह पाठ यह है : 'मेहुणमूलं च सुब्वए तत्थ-तत्थ वत्तपुवा संगामा जणक्खयकरा-सीयाए, दोवइए कए, रुप्पिणीए पउमावइए, ताराए, कंचणाए रत्तसुभद्दाए, अहिन्नियाए, सुवएणगुलियाए, किन्नरोए, सुरूवविज्जुमतीए, रोहिणीए अन्नेसुय एवमादिएसु वहवो महिलाकएम सुब्वंति अइक्तासंगामा.' अर्थ-मैथुन मूलक संग्राम, जो विभिन्न शास्त्रों में सुने जाते हैं. जो युद्ध नरसंहार करने वाले हैं, जैसे सीता और द्रौपदी के लिये, रुक्मिणी, पद्मावती, तारा, कंचना, रक्तसुभद्रा, अहल्या, सुवर्णगुलिका, किन्नरी आदि के लिये युद्ध मूल सूत्र में आये हुए उपर्युक्त उदाहरणों की व्याख्या टीकाकार ने संक्षेप में की है. इन स्त्रियों के विषय में दूसरे ग्रंथों . . . HEAVENaa .... . . CC.............................. O Jain EURaisers OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOD www.pmenbrary.org