________________ 20 कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड कलामण्डल के पुतली-प्रयोग हमारे देश में कठपुतलियों के शैक्षणिक उपयोग की दिशा में पद्मश्री देवीलाल सामर ने अपने विश्वप्रसिद्ध भारतीय लोककला मण्डल में अनेक उपयोगी और महत्त्वपूर्ण प्रयोग किये हैं। ये प्रयोग यहाँ के गोविन्द कठपुतली प्रशिक्षण केन्द्र में गत 6 वर्षों से बराबर होते रहे हैं / राजस्थान के अतिरिक्त गुजरात, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों के कलाकार-अध्यापक यहाँ प्रशिक्षित हो चुके हैं। विदेश के भी कई पुतली-प्रेमी यहाँ तीन-तीन चार-चार माह रहकर पुतली-प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं / बालशिक्षण के साथ प्रौढशिक्षण की दृष्टि से भी इस केन्द्र में कुछ अच्छे प्रयोग किये गये हैं / जनशिक्षण में पुतलियाँ अधिकाधिक कारगर सिद्ध हों इसलिए परिवार नियोजन, हड़ताल, प्रौढशिक्षा, अल्प प्रयोगों से प्रभावित होकर राजस्थान के हायर सैकण्डरी बोर्ड ने कठपुतली को हवीं-१० वीं कक्षा में एक विषय के रूप में मान्यकर यहाँ के प्रशिक्षण केन्द्र को इस प्रशिक्षण के लिए मान्यता प्रदान की है। जनशिक्षण में इन कलाओं की उपयोगिता निःसन्देह असन्दिग्ध है परन्तु इन्हें शिक्षोपयोगी बनाने के लिये कला का एक विशिष्ट नजरिया आवश्यक है। यह नजरिया प्राय: प्रत्येक व्यक्ति में नहीं होता। इसके लिए किसी ऐसे कलाविद् का सहयोग हो जो कला के साथ-साथ शिक्षण-प्रशिक्षण का भी पर्याप्त अनुभव रखता हो अन्यथा ये कलाएँ अपने मूल सौन्दर्य को भी खो देंगी और जनशिक्षण के बजाय शिक्षा का अनर्थ करने में कोई कसर नहीं रखेंगी। - सुवचन वाग् वै शबली ---ताण्ड्य महाब्राह्मण 2113 / 1 वाणी काम धेनु है। नाना वीर्याण्यहानि करोति ---ताण्ड्य महाब्राह्मण 21 / 9 / 7 सत्पुरुष अपने जीवन के प्रत्येक दिन को विविध सत्कार्यों से सफल बनाते हैं। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org